ज़िंदगी मे विफलताओं से कैसे निपटें – How to deal with failure in life
एक शाम 67 वर्षीय थॉमस एडिसन अपनी Lab से लौट कर आए। घर पर उन्होंने खाना खाया और पूरे दिन की मेहनत के बाद वह आराम करने जा ही रहे थे कि उनकी फैक्ट्री से एक आदमी दौड़ा आया। थॉमस एडिसन की फैक्ट्री में आग लग चुकी थी उनका घर पास में ही था जब उन्होंने जाकर देखा तो तो चार Fire engines आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन आग लगी थी फैक्ट्री में रखे केमिकल्स के कारण और किसी भी तरह से बुझ नहीं रही थी फैक्ट्री में 5 मंजिल ऊंची हरी और पीली आग की लपटें निकल रही थी। इस फैक्ट्री में थॉमस एडिसन का सब कुछ था उनकी Lab थी सारे research, invention और prototype यहां रखे हुए थे, जीवन भर की मेहनत से उन्होंने यह फैक्ट्री लगाई थी जो इस समय किसी आतिशबाजी की तरह जल रही थी कई काम करने वाले employee यह देखकर हताश हो रहे थे एडीसन ने यह सब देखा और पलट कर अपने बेटे से बड़े उत्साह से पूछा “जाओ अपनी मां और घर के बाकी लोगों को बुला लाओ ऐसी रंग बिरंगी आज जीवन में दोबारा देखने नहीं मिलेगी”
बेटा आश्चर्य से देखने लगा एडिशन साहब ने कहा कोई बात नहीं.. बहुत बेकार का कबाड़ पड़ा था फैक्ट्री में उन सब से पीछा छूटा.. जिस आदमी के जीवन भर की कमाई और मेहनत उसकी आंखों के सामने जल रही हो उसका यह रिएक्शन चौंकाने वाला था थॉमस एडिसन को रोना चाहिए था, गुस्सा होना चाहिए था, यहां तक कि डिप्रेशन में चले जाना चाहिए था लेकिन उन सब से क्या हासिल होता उन्होंने किसी भी तरह का रिएक्शन दिखाने आवेश दिखाने में समय खर्च नहीं किया।
एडीसन साहब जानते थे कि महान काम करने में बड़े नुकसान भी देखना पड़ते हैं
“हम जो भी काम करते हैं उसका अच्छा बुरा फायदा नुकसान कठिनाई कंपटीशन हमें सब पसंद होना चाहिए”
अगले दिन एडिशन साहब ने न्यूज़ रिपोर्टर से कहा कि मैं अभी 67 साल का हूं और कल से अपना करियर दोबारा शुरू करूंगा उन्होंने यह भी कहा कि रात भर से आग से निपटने और घटनास्थल को संभालते संभालते मैं थक गया हूं लेकिन कोई बात नहीं मेरे साथ ऐसी छोटी बड़ी घटनाएं हो चुकी है मैं इनसे विचलित नहीं होता और एडिशन साहब अपनी बात पर टिके रहे जिस रात आग लगी थी उसी रात ढाई सौ वर्कर लापता थे लेकिन 1 दिन बाद जब सुबह फैक्ट्री का सायरन बजा तो पूरे 7000 वर्कर्स आए और उन्होंने फैक्ट्री बनाने का काम शुरू कर दिया।
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एडीसन साहब ने हेनरी फोर्ड से बड़ा लोन लिया अगले 3 हफ्तों में आधी फैक्ट्री शुरू हो गई थी और अगले 1 महीने में वर्कर्स दो शिफ्टों में काम करने लगे इस घटना के बाद एडिशन साहब के अंदर जैसे नया जोश आ गया हो उन्होंने कई प्रोडक्ट्स बनाना शुरू कर दिए और उस साल एडिशन और उनके इन्वेस्टर्स ने 5 गुना ज्यादा व्यापार किया।
सबसे बड़ी दिक्कत जो हम लोगों को setback face को करने में आती है, बाधा और फेलियर से निपटने में आती है वह है expectations हमारे अंदर एक belief system बैठा हुआ है कि हमको जरा भी तकलीफ नहीं होना चाहिए हमारे साथ हमेशा अच्छा ही अच्छा होना चाहिए इसलिए जब कठिनाइयां, मुश्किल दौर आता है तो यह belief system सक्रिय हो जाता है और मन में सवाल पैदा करने लगता है कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? मेरी क्या गलती थी? मेरी ऐसी किस्मत क्यों है? अगर इस समय हम इस expectations को छोड़ दें कि हमारे साथ हमेशा सब कुछ अच्छा ही होना चाहिए, और जो हो गया है उसे एक्सेप्ट कर ले तो हमारा रिएक्शन सकारात्मक हो जाएगा, हम खुद से सही सवाल पूछने लगते हैं; कि चलो यहां से अब क्या किया जा सकता है।
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stoics कहते हैं “कि जो भी हो रहा है उससे भागों मत उसे अवॉइड मत करो उसे टॉलरेट या सहन भी मत करो बल्कि उसे प्रेम और उत्साह से स्वीकार करो”
स्वीकार करने का क्या मतलब है?
जब भी हम किसी चीज को स्वीकार करते हैं तो हम किस्मत या किसी और से शिकायत नहीं करते हैं कि यह failure यह accident तुम्हारे कारण हुआ.. बल्कि मुसीबत से कहते हैं “कि भाई अब आ गए हो तो चाय पियो और यह बताओ कि अपने साथ क्या संभावनाऐं और सीख ले कर आए हो तुम्हारे साथ हमें किस प्रकार के नए अनुभव मिलेंगे”
थॉमस एडिसन सब जानते थे कि उन्हें इन्वेस्टर्स का पैसा लौटाना होगा, फैक्ट्री के लिए बड़ा उधार लेना होगा, नए प्रोडक्ट और प्रोटोटाइप बनाने होंगे लैब में घंटों लगने वाले हैं लेकिन यह सब उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया जब आप कुछ नया स्वीकार करते हैं तो आपको नेगेटिव इमोशंस से नहीं निपटना पड़ता है और आप अपनी एनर्जी और दिमाग वहां लगा सकते हैं जहां पर इनका सबसे बड़ा impact होता है
लेकिन क्या यह emotions सच में इतना जरूरी हैं?
बिल्कुल..! न्यूरोसाइंटिस्ट भी कहते हैं कि जैसे हमारे इमोशंस होते हैं वैसी हम फिलिंग्स महसूस करते हैं वैसे ही सोचते हैं और वैसे ही एक्शंस लेते हैं और आखिर में वैसे ही रिजल्ट मिलते हैं हम सब self mastery के सफर पर हैं और कुछ ना कुछ बाधाएं रुकावटें तो आती रहती हैं और आती रहेंगी हम अपने छोटे बड़े failure को देखकर या तो परेशान या तो frustrat हो सकते हैं या फिर उसे एक puzzle या एक्सपेरिमेंट की तरह सुलझा सकते हैं इसे puzzle की तरह सुलझाने का पहला कदम है कि हमें हमेशा मुस्कुरा कर इसे गले लगाना पड़ेगा तभी हमारे emotions, feelings, thought और actions एक लाइन में आ जाएंगे।
दोस्तों अगर आप ध्यान से देखो तो दो-तीन साल पहले जो भी फैलियर थे आपकी जिंदगी में उन्होंने आपको बेहतर समझदार और मजबूत इंसान ही बनाया है आज उनके बारे में आराम से सोचो तो चेहरे पर मुस्कान आ जाती है फिर क्यों अच्छी भावनाओं को दो-तीन साल delay करना? जो भी हो रहा है और जो भी होगा वह हमे सहर्ष स्वीकार है।
आखिर में Marcus aurelius कहते हैं “जैसे तीव्र अग्नि में कुछ भी फेंका जाए तो वह उसे जलाकर और भड़कती है उसी तरह कुछ भी होता रहे कितनी भी बड़ी परेशानी आ जाए हमारा एटीट्यूड बेहतर ही होता जाएगा”
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