• ये मेरा सौभग्य होगा यदि मेरा जन्मदिन मनाने की जगह, 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए।
Sarvepalli Radhakrishnan सर्वपल्ली राधाकृष्णन
• उसका मौलिक स्वभाव है- सत-चित-आनंद: पूर्ण होना – वह सब कुछ समेट लेता है क्योंकि उसके बाहर कुछ भी नहीं है; पूर्ण चेतना – वह पूर्ण चेतना है।
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• जिस प्रकार आत्मा किसी व्यक्ति की सचेतन शक्तियों के पीछे की वास्तविकता है, उसी प्रकार परमात्मा इस ब्रह्माण्ड की समस्त गतिविधियों के पीछे का अनंत आधार है।
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• हिंदू धर्म कुछ धर्मों के एक अजीब जुनून से पूरी तरह स्वतंत्र है कि मुक्ति प्राप्त करने के लिए एक विशेष धार्मिक तत्वमीमांसा की स्वीकृति आवश्यक है, और इसे ना मानना घोर पाप है, जिसकी सजा नर्क भुगतनी पड़ती है।
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• मनुष्य एक विरोधाभास है – इस दुनिया का निरंतर प्रताप और कलंक।
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• परम मैं पाप, बुढापे, मृत्यु, दुःख, भूख और प्यास, सभी से मुक्त है, वो न कोई इच्छा रखता है, न कुछ सोचता है।
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• ईश्वर सभी आत्माओं की आत्मा हैं – परम आत्मा – परम चेतना।
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• आत्मा वो है जो तब रहती है जब वो सबकुछ जो स्वतः नहीं है नष्ट हो जाता है।
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• अपने पड़ोसी से खुद की तरह प्रेम करो क्योंकि तुम खुद अपने पड़ोसी हो. ये भ्रम है जो तुम्हे ये सोचने पर विवश करता है कि तुम्हारा पड़ोसी तुम्हारे अलावा कोई और है।
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• हिन्दू धर्म सिर्फ एक आस्था नहीं है. यह तर्क और अन्दर से आने वाली आवाज़ का समागम है जिसे सिर्फ अनुभव किया जा सकता है परिभाषित नहीं।
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• इससे पहले कि हम एक स्थायी सभ्यता, जो पूरी मानवता के लायक हो का निर्माण करें, ये ज़रूरी है कि प्रत्येक ऐतिहासिक सभ्यता अपनी कमियों और दुनिया की आदर्श सभ्यता बनने की अपनी अयोग्यता को जाने।
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• सच्चा धर्म एक क्रांतिकारी ताकत है: यह उत्पीड़न, विशेषाधिकार और अन्याय का एक प्रमुख दुश्मन है।
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• धर्म व्यवहार है, सिर्फ विश्वास नहीं।
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• मेरी महत्त्वाकांक्षा सिर्फ इतिहास लिखने की नहीं है बल्कि मन की गति को समझने, उसे व्यक्त करने और भारत के स्रोतों को मानव प्रकृति की प्रगाढ़ सतह पर प्रकट करने की है।
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• हमें एक कारण या एक मकसद या उसके लिए एक उद्देश्य की तलाश नहीं करनी चाहिए, जो कि अपने स्वभाव में, शाश्वत रूप से आत्म-अस्तित्व और मुक्त हो।
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• एक साहित्यिक प्रतिभा , कहा जाता है कि हर एक की तरह दिखती है, लेकिन उस जैसा कोई नहीं दिखता।
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• यह भारत की गहन आध्यात्मिकता है, न कि कोई महान राजनीतिक संरचना या सामाजिक संगठन, जिसका इसने निर्माण किया है, जो इसे समय के विध्वंस और इतिहास की दुर्घटनाओं को झेलने में सक्षम बनाता है।
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• शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके।
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• हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशाशन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम हो।
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• उम्र या युवावस्था का काल-क्रम से लेना-देना नहीं है. हम उतने ही नौजवान या बूढें हैं जितना हम महसूस करते हैं. हम अपने बारे में क्या सोचते हैं यही मायने रखता है।
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• केवल निर्मल मन वाला व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है. स्वयं के साथ ईमानदारी आध्यात्मिक अखंडता की अनिवार्यता है।
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• शांति राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से नहीं आ सकते बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है।
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• ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है।
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• जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन का सपना है।
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• सहिष्णुता वो श्रद्धांजलि है जो सीमित मन असीमित की असीमता को देता है।
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• पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।
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• मौत कभी अंत या बाधा नहीं है बल्कि अधिक से अधिक नए कदमो की शुरुआत है।
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• दुनिया के सारे संगठन अप्रभावी हो जायेंगे यदि यह सत्य कि प्रेम द्वेष से शक्तिशाली होता है उन्हें प्रेरित नही करता।
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• भगवान् की पूजा नहीं होती बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके के नाम पर बोलने का दावा करते हैं.पाप पवित्रता का उल्लंघन नहीं ऐसे लोगों की आज्ञा का उल्लंघन बन जाता है।
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• भगवान् हम सबके भीतर रहता है, महसूस करता है और कष्ट सहता है, और समय के साथ उसके गुण, ज्ञान, सौन्दर्य और प्रेम हममें से हर एक के अन्दर उजागर होंगे।
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• कला मानवीय आत्मा की गहरी परतों को उजागर करती है. कला तभी संभव है जब स्वर्ग धरती को छुए।
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• लोकतंत्र सिर्फ विशेष लोगों के नहीं बल्कि हर एक मनुष्य की आध्यात्मिक संभावनाओं में एक यकीन है।
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• मनुष्य को सिर्फ तकनीकी दक्षता नही बल्कि आत्मा की महानता प्राप्त करने की भी ज़रुरत है।
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• धन, शक्ति और दक्षता केवल जीवन के साधन हैं खुद जीवन नहीं।
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• हर्ष और आनंद से परिपूर्ण जीवन केवल ज्ञान और विज्ञान के आधार पर संभव है।
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• जीवन को बुराई की तरह देखता और दुनिया को एक भ्रम मानना महज कृतध्नता है।
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• घोर पापियों का भविष्य है, यहाँ तक कि सबसे महान संत का भी अतीत रहा है. कोई भी इतना अच्छा या बुरा नहीं है जितना कि वो सोचता है।
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• कहते हैं कि धर्म के बिना इंसान लगाम के बिना घोड़े की तरह है।
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• सच्चा गुरु वो है जो हमें खुद के बारे में सोचने में मदद करता है।
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• संस्कृत साहित्य एक अर्थ में राष्ट्रीय है, लेकिन इसका उद्देश्य सार्वभौमिक रहा है।
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• आध्यात्मक जीवन भारत की प्रतिभा है।
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• धर्म भय पर विजय है; असफलता और मौत का मारक है।
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• यदि मानव दानव बन जाता है तो ये उसकी हार है , यदि मानव महामानव बन जाता है तो ये उसका चमत्कार है .यदि मनुष्य मानव बन जाता है तो ये उसके जीत है।
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• मानवीय जीवन जैसा हम जीते हैं वो महज हम जैसा जीवन जी सकते हैं उसक कच्चा रूप है।
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• कोई भी जो स्वयं को सांसारिक गतिविधियों से दूर रखता है और इसके संकटों के प्रति असंवेदनशील है वास्तव में बुद्धिमान नहीं हो सकता।
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• जब हम ये सोचते हैं कि हम जानते हैं तो हमारा सीखना रुक जाता है।
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• मानवीय स्वाभाव मूल रूप से अच्छा है, और आत्मज्ञान का प्रयास सभी बुराईयों को ख़त्म कर देगा।
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• राष्ट्र, लोगों की तरह सिर्फ जो हांसिल किया उससे नहीं बल्कि जो छोड़ा उससे भी निर्मित होते हैं।
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• कवी के धर्म में किसी निश्चित सिद्धांत के लिए कोई जगह नहीं है।
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• किताब पढना हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची ख़ुशी देता है।
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