भारत के इतिहास में ऐसी बहुत सी महिलाएं रही है जिन्होंने अपने आत्मसम्मान के लिए बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है अगर हम अपने देश के इतिहास पर नजर डालें तो हमें अपने देश की कई ऐसी रानियों के बारे में जानने को मिलेगा जिन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर के अपनी आने वाली पीढ़ियों को बचाया है ऐसी ही एक वीरांगना हमारे भारत में रही थी जिन्होंने क्रूर औरंगजेब और उसकी सेना को पस्त किया था वह थीं बुंदेलखंड की रानी वीरांगना सारंधा।
“सारंधा” कौन थीं?
• इतिहासकारों ने रानी सारंधा के बारे में कम ही लिखा है लेकिन एक उल्लेख पता चला है कि रानी सारंधा के बचपन का नाम लाल कुंवरी था। एक बार वह कुल देवी के मंदिर अपनी सखियों के साथ जा रही थी तभी ओरछा के राजकुमार चंपत राय की नजर उन पर पड़ी उन्हें देखकर वह मोहित हो गए और जब उन्हें पता चला कि राजकुमारी सुंदर ही नहीं बल्कि बुद्धिमान और गुणी भी हैं तब उनके मन में राजकुमारी को अपनी रानी बनाने की इच्छा जागी।
• शुभ मुहूर्त देखकर उन दोनों का विवाह तय हुआ और विवाह के पश्चात रानी ओरछा आ गई कुछ ही महीनों में राजकुमार चंपतराय को सत्ता संभालने के योग्य समझकर उन्हें राजा बना दिया गया। और इस तरह लाल कुंवरी बन गईं – रानी सारन्धा। राजा चंपतराय का शुरुआती कुछ समय विरोधियों को दबाने एवं मुगलों को सामना करने में व्यतीत हुआ। इस समय रानी ने प्रजा के सुख समृद्धि पर जोर दिया। प्रजापालनहारी रानी कुछ ही समय में ही प्रजा के बीच रानी माता के नाम से प्रसिद्ध हो गईं।
औरंगजेब से सामना
• औरंगजेब को जब पता चला रानी सारंधा के बारे में तो वह उसे अपने हरम में रखना चाहता था उसने रानी के नाम एक पत्र भिजवाया जिसमें उसने लिखा था की रानी ओरछा को छोड़कर दिल्ली आ जाए और चेतावनी दी कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो इसका परिणाम बहुत बुरा होगा
• जब ओरछा के राजा चंपत राय ने यह पत्र देखा तो वह अचंभित रह गए तब रानी ने उनसे कहा कि राजन आप उन्हें यह उत्तर दीजिए कि हम उनके हरम में जाना नहीं चाहते चाहे इसके लिए हमें कोई भी कीमत चुकानी पड़े। औरंगजेब को उनका यह उत्तर मिला तो वह आग बबूला हो गया क्योंकि उसको ऐसे उत्तर की आशा बिल्कुल नहीं थी और फिर क्रूर औरंगजेब ने राजा चंपत राय और रानी सारंधा के विरुद्ध युद्ध अभियान भेज दिया फिर भी राजा और रानी ने औरंगजेब की सेना का डटकर साहस से मुकाबला किया।
• आक्रमण के लगातार चलते राजा और रानी ने ओरछा से निकल जाना उचित समझा ओरछा से निकलने के बाद राजा और रानी बुंदेलखंड के जंगलों में 3 साल तक रहे रानी भी राजा के साथ अपना पत्नी धर्म निभा रही थी। वह हर सुख दुख में राजा का साथ देती।
• औरंगजेब ने राजा चंपत राय को ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मिले आखिर में औरंगजेब ने खुद ही राजा को ढूंढने की ठानी और चंपत राय को ढूंढने में लगी बादशाही सेना हटा ली गई तो राजा चंपत राय ने सोचा कि औरंगजेब ने हार मान कर तलाशी अभियान खत्म कर दिया ऐसा सोच कर राजा वापस अपने ओरछा के किले में लौट आए औरंगजेब भी इसी का इंतजार कर रहा था उसने ओरछा के किले को तुरंत घेर लिया और खूब उत्पात मचाया।
• औरंगजेब के किले को घेरे हुए 3 सप्ताह हो चुके थे सभी खाने पीने का सामान भी लगभग खत्म हो चुका था राजा की शक्ति दिन प्रतिदिन कम होती जा रही थी और इसी बीच राजा ज्वर से पीड़ित हो गए राजा रानी ने कुछ विचार विमर्श किया। रानी ने संकट के समय प्रजा को छोड़कर जाना उचित नहीं समझा इसीलिए रानी ने अपने पुत्र छत्रसाल को औरंगजेब के पास संधि पत्र लेकर भेज दिया जिससे कि निर्दोष लोगों के प्राण बचाए जा सके।
• अपनी प्रजा और देशवासियों की रक्षा के लिए रानी ने अपने पुत्र छत्रसाल को संकट में डाल दिया था तब औरंगजेब ने छत्रसाल को अपने पास रख लिया और ओरछा के लोगों को कुछ ना करने का संधि पत्र भिजवा दिया जब रानी को यह पत्र मिला तो उन्हें यह पढ़कर प्रसन्नता हुई लेकिन दूसरी और अपने पुत्र को खोने का दुख भी था रानी सारंधा के सामने एक और बीमार पति और दूसरी और अपना पुत्र था फिर भी उन्होंने साहस से काम लिया और उन्होंने चंपत राय को अंधेरे में किले से निकालने की योजना बनाई और अपने भाइयों और विश्वसनीय सैनिकों को अपने पुत्र को औरंगजेब से छुड़ाने को भेज दिया।
• औरंगजेब कि सेना राजा और रानी को ढूंढ रही थी इसके बाद भी रानी सारंधा ने अपने राजा को किले से 10 कोस दूर ले गई तभी उन्होंने पीछे से आ रही औरंगजेब की सेना को देखा और राजा को जगाया तो राजा ने कहा कि मैं बंधक बनने से अच्छा यही मर जाऊं। राजा के कुछ सैनिक थे जिन्होंने बादशाह के सैनिकों से मुकाबला किया लेकिन जब सभी मारे गए तो राजा ने रानी से कहा कि आप मुझे मार दे में बंधक नहीं बनना चाहता। और रानी ने फिर ऐसा ही किया उन्होंने अपने भारी मन से राजा के सीने में तलवार घोंप दी रानी का यह साहस देख कर औरंगजेब के सैनिक दंग रह गए और फिर कुछ ही समय में रानी ने अपनी गर्दन भी उसी तलवार से उड़ा दी।
• उधर राजकुमार छत्रसाल को राजा के सैनिकों ने बड़ी सूझबूझ से औरंगजेब की कैद से छुड़ा लिया लेकिन जब तक वह अपने माता-पिता तक पहुंचे तब तक अनहोनी घट चुकी थी 12 वर्षीय राजकुमार छत्रसाल के सामने उनके साहसी माता पिता के शव पड़े थे ऐसी स्थिति को देखकर तो कोई भी टूट जाता लेकिन राजकुमार छत्रसाल ने अपने माता पिता के रक्त से स्वयं का राजतिलक किया और प्रण किया कि बुंदेलखंड से औरंगजेब का राज्य समाप्त करके ही दम लेंगे और फिर बाद में यही राजकुमार छत्रसाल बाद में बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
• रानी सारंधा एक दृढ़ इच्छाशक्ति और साहसी महिला थी अगर वह चाहती तो अपने राजा और पुत्र को लेकर ओरछा से निकल जाती और उनके प्राण भी बच जाते लेकिन उन्होंने स्वयं से पहले अपनी प्रजा और अपने लोगों के बारे में सोचा जिन की रक्षा करते हुए उन्होंने मारना स्वीकार किया।
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