शब्दों की कीमत हिंदी कहानी | Value of speaking hindi moral story
शब्दों की कीमत हिंदी प्रेरक कहनी
एक बार एक परिवार एक शहर में रहता था। माता पिता के अलावा परिवार में थी सात साल की अदिति और पाँच साल का आदित्य भी था। वे भाई बहन थे लेकिन बहुत अलग थे एक दूसरे से। आदित्य बहुत कम बोलता था जबकि अदिति बहुत बातूनी थी। वह हर मामले पर बोलती थी और कभी कभी बिना किसी कारण के भी।
“मां आज स्कूल में टीचर ने सभी छात्र से एक एक करके सवाल किये और जब मेरी बारी आई तो मैंने उनका प्रश्न खत्म होने से पहले ही जवाब दे दिया लेकिन शिक्षक ने फिर भी मुझे दस में से केवल पांच अंक ही दिये”- अदिति ने कहा
उसकी माँ ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह कम बोलें ओर कहा;
“अदिति हमें कम और मीठा बोलना चाहिए। अगर हम बहुत बोलते हैं तो लोग हम जो बोलते हैं उस पर ध्यान देना बंद कर देते हैं”
पर वो हमेशा कहती थी कि माँ मैं बहुत कम बोलती हूँ।
वास्तव में मैं यह भी नहीं जानती कि बहुत बोलने का मतलब क्या है।
एक दिन उनकी चाची आई उनके साथ रहने के लिए। और उन दोनों बच्चों के लिए खोलने भी लाई ओर कहा
“आदित्य यह आपके लिए एक रोबोट है। और अदिति यह तुम्हारी गुड़िया है। आदित्य ने चुपचाप अपना उपहार रखा ओर कहा शुक्रिया आंटी। लेकिन अदिति हमेशा की तरह शुरू हो गई और बोली
“आंटी आपको यही गुड़िया क्यों मिली? मेरे पास यह गुड़िया पहले से ही है। अगर तुमने मुझसे पूछा होता तो मैं आपको बताती कि मुझे कौन सी गुड़िया चाहिए”
“ठीक है अदिति अगली बार मैं आपसे ही पूछूँगी”
“आपको मुझसे पूछने की जरूरत नहीं है मुझे ले चलना अगली बार आपके साथ दुकान पर। मैं अपने लिए एक अच्छी गुड़िया चुनूंगी और फिर आप इसे मेरे लिए खरीद लेना”
“अच्छा जी”
“ठीक है तो चलिए अभी चलते हैं”
“अभी मैं अभी बहुत थक गई हूँ”
हाँ अब तुम थक गए हो तो बताओ कब तुम मुझे दुकान पर ले जाओगे”
“अदिति अपनी मौसी को परेशान करना बंद करो। अंदर आ जाइए” – अदिति की माँ ने कहा
“मैं उन्हें परेशान नहीं कर रही हूं। मैं अभी आंटी से बात कर रही हूं”
अगले दिन चाची और उसकी माँ बात कर रहे थे। हम जा रहे हैं नैनीताल गर्मी की छुट्टियों के लिए। तभी अदिति वहां आ गई और हमेशा की तरह बोलने लगी।
“पिछली बार हम नैनीताल गए थे। और इससे पहले हम देहरादून में दादी के घर गए थे। क्या आप देहरादून गए हैं ”
“हाँ एक बार”
“हम हर बार वहां जाते हैं। हम वहां कई बार गए हैं। आपको भी जाना चाहिए। गर्मी के समय में यह एक बेहतरीन जगह है। आपको वह जगह बहुत पसंद आएगी”
“चलो रसोई में चलते हैं और फिर नैनीताल भी जाओ”
उस शाम मौसी और अदिति के पिता बात कर रहे थे।
“दीदी मैं आपको यहां देखकर बहुत खुश हूं। मुझे आपसे मिलने का समय कभी नहीं मिलता”
“कोई दिक्कत नहीं है मुझे पता है कि तुम काम में व्यस्त हो। और इसलिए मैं यहां आई हूँ”
तभी अदिति वहां पहुंची और बोली
“पापा मुझे आपको कुछ बताना है ”
“अभी नहीं मैं अभी आंटी से बात कर रहा हूं”
“अच्छा आप पहले उनसे बात कर लें”
फिर अदिति वहीं बैठ गई और उनके बात खत्म होने का इंतजार करने लगी।
“मैंने सुना है आप कुछ उपहार लाई हैं बच्चो के लिए क्या तुम्हें मेरे लिए कुछ नहीं मिला?”
“मेरे पास आपके लिए भी एक उपहार है ओर उनको एक शर्ट देतीं हैं।
“यह शर्ट बहुत अच्छी है।”
अदिति ज्यादा इंतज़ार नही कर सकी और फिर वह बोली।
“पापा आपका तोहफा बहुत अच्छा है। आंटी तुम मेरे लिए ऐसे तोहफे लाई हो और पापा के लिए एक अच्छा उपहार। तो इसका मतलब है कि आप अच्छे उपहार खरीद सकते हैं। लेकिन मुझे नहीं पता कि उन्हें मेरे लिए ही छोटी सी गुड़िया ही क्यों मिली पापा क्या आप जानते हैं चाची ने मुझे एक गुड़िया दी। मेरे पास वैसी गुड़िया पहले से ही हैं। और इसलिए मैंने आंटी से कहा कोई और उपहार चाहिए।
आंटी ने कहा अगली बार वह उपहार लेने से पहले अदिति से पूछ लेगी।
अब यह सिलसिला कुछ और दिनों तक चलता रहा। अदिति की ज्यादा बोलने की आदत ऐसे ही चलती रही।
अब तुम खा रहे हो.. मैंने पहले खाया, तुम अभी सो रहे हो मैं देर रात सोती हूँ। तुम अब जाग रहे हो में सुबह जल्दी उठती हूँ। आंटी अदिति की ज्यादा बोलने की आदत से नाराज थीं लेकिन उन्होंने कुछ नही कहा।
जब तीन दिनों के बाद आखिरकार मौसी के जाने का समय आया तो उन्होंने बच्चों से पूछा
“तो मुझे बताओ मुझे अगली बार तुम्हारे लिए क्या लाना चाहिए।
आंटी तुम अगली बार बस यहाँ आ जाना तब हम मेरे पसंदीदा खिलौने लेने चलेंगे – अदिति ने कहा
आंटी अगली बार हमारे लिए मिठाई लाना – आदित्य ने कहा
“ठीक है आदित्य मैं अगली बार तुम्हारे लिए मिठाई लाऊंगी”
यह कहकर वह चली गई। लेकिन अदिति इस बात से खफा थी उसकी चाची ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया उसने उदास होकर अपनी माँ से कहा
“आंटी मेरी बात नहीं मानी लेकिन उन्होंने भाई की सुनी।
मां ने समझाने की कोशिश की अदिति इसलिए मैं आपसे कम बोलने के लिए कहती हूं। जब हम कम और मीठा बोलते हैं तो हमारे शब्दों का मूल्य है। और अगर हम बहुत बोलते हैं तो हमारी बात पर कोई ध्यान नहीं देता। अदिति समझ गई उसने मां को इशारा किया और कहा तुम सही हो माँ। अब में कभी भी ज्यादा नही बोलूंगी। और इस तरह अदिति को उसके बातूनी व्यवहार से छुटकारा मिला वह अब कम बोलने लगी।
इस कहानी से मिली सीख
हमे हमेशा कम और अच्छा ही बोलना चाहिए ज्यादा बोलने से हमारी बात का कोई मूल्य नही रह जाता।