मानव व्यवहार के बारे में 9 मनोवैज्ञानिक तथ्य | Psychology human knowledge facts in hindi
Psychology human knowledge facts in hindi
इंसान का दिमाग काफी मिस्टीरियस तरीके से काम करता है लेकिन साइंस ने इस मिस्टीरियस को समझाने की काफी कोशिश की है आज की इस पोस्ट में हम साइकोलॉजिकल फैक्ट जानने वाले हैं।
1.) नसीबो इफेक्ट (Nocebo effect)
आपने placebo effect बारे में तो सुना होगा यह इंसान के दिमाग को पॉजिटिव तरीके से चलाने के लिए उपयोग किया जाता है यह कुछ इस तरह काम करता है कि मान लो आपके सिर में तेज दर्द है और आपको यह बोल कर एक टेबलेट दी जाती है कि यह टैबलेट आप का दर्द ठीक कर देगी। उसको लेते ही आपकी बॉडी पॉजिटिव तरीके से रिजेक्ट करने लगेगी फिर चाहे वह टेबलेट नकली ही क्यों ना हो आपका सर दर्द उसी से ठीक हो जाएगा। क्योंकि आपका दिमाग पॉजिटिव तरीके से काम कर रहा होगा ठीक इसका ही उल्टा होता है नसीबो इफेक्ट
मान लो डॉक्टर आपको शक्कर की मीठी टेबलेट देता है और कहता है कि इसकी वजह से आपको सर दर्द या सर्दी हो सकती है तो इसके काफी चांसेस है कि आप यह लक्षण महसूस करें भले ही यह लक्षण उस टेबलेट से ना होते हो लेकिन अब आपको बोला हो गया है तो आपका दिमाग उसी तरह काम करेगा।
2.) एंकरिंग (Anchoring)
मान लो आपका कोई दोस्त आपके साथ पार्टी में गया अब पार्टी में आपने नोटिस किया कि आपके दोस्त ने ब्रांडेड जूते पहने हुए हैं तो लाजमी है कि आप जूतों में दिलचस्पी दिखाओगे। जूतों से प्रभावित होकर आपने अपने दोस्त से उन जूतों के दाम के बारे में पूछ लिया फिर आपका दोस्त आपसे कहता है कि उसने जूते बहुत ही सस्ते दाम में खरीदे हैं लेकिन जब वह बताता है कि उसने यह जूते ₹10000 में खरीदे हैं तब आपको पता चलता है कि आप तो कुछ और ही सोच रहे थे।
जो चीज दूसरों के लिए सस्ती हो वह हो सकता है कि आपके लिए महंगी हो और जो जो दूसरों के लिए महंगी हो वह हो सकता है कि आपके लिए सस्ती हो।
तो आखिर किसी चीज का महंगा सस्ता होने का क्या मतलब है?
यह साइकोलॉजिकल टेक्निक एंकरिंग पर डिपेंड करता है मान लो आप जहां रहते हो वहां कुकिंग गैस 90 रुपये प्रति लीटर मिलती है तो आपका दिमाग उसके उसी दाम से एंकरिंग करेगा। अब आप किसी दूसरे शहर में जाते हो और वहां गैस का दाम ₹110 है तो वह आपको महंगी लगेगी ठीक इसी तरह अगर किसी जगह गैस ₹120 रुपये प्रति लीटर है तो आपको इससे नीचे के सभी दाम सस्ते लगेंगे और आप बड़ी खुशी से वहां से गैस खरीद लोगे
इसीलिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि महंगाई बहुत है वह इसलिए कहते हैं क्योंकि उनका दिमाग एंकरिंग करता है 30 साल पहले के दाम से।
3.) लॉ ऑफ अट्रैक्शन (Low of attraction)
लॉ ऑफ अट्रैक्शन के अनुसार हमारे साथ वैसा ही होता है जैसा हम सोचते हैं या हम मानते हैं और यही हमारे सोच और विश्वास ही हकीकत बनता है। अगर आपने ओम शांति ओम मूवी देखी होगी तो उसका यह डायलॉग “अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है” हालांकि यह डायलॉग ओरिजिनल पाउलो कोएलो की नोवल द अल्केमिस्ट में है। इसी सिद्धांत को लो ऑफ अट्रैक्शन कहा जाता है।
अगर आप पैसे कमाने के बारे में सोचोगे तो आपके सामने पैसे कमाने के बहुत सारे जरिए दिखेंगे, ऐसे ही अगर आप किसी अच्छी जॉब को पाने के बारे में सोचोगे तो वह जोब आपको आपके काफी करीब दिखेगी और आपका दिमाग उसको पाने के लिए आपसे मेहनत करवाएगा। हमारे दिमाग में रोज लाखों इंफॉर्मेशन प्रोसेस होती है तो जिस चीज के बारे हम ज्यादा सोचेंगे हमारा दिमाग उसी चीज के बारे में ज्यादा फोकस करेगा और बार-बार हमें उसी चीज की याद दिलाता रहेगा। अगर हम पॉजिटिव चीजों के बारे में सोचेंगे तो रिजल्ट भी पॉजिटिव ही दिखाई देगा। अगर हम नेगेटिव चीजों के बारे में सोचेंगे तो रिजल्ट भी नेगेटिव ही दिखाई देगा प्रॉब्लम सोचोगे प्रॉब्लम दिखाई देगी सॉल्यूशन सोचोगे सॉल्यूशन दिखाई देगी।
जेम्स एलेन ने अपनी किताब As a Man Thinketh में बताया है कि जैसे एक पेड़ बिना बीज के उग नहीं सकता वैसे ही हमारे Actions के पीछे हमारे विचारों का एक बीज होता है जब वह विचार हमारे दिमाग में आता है तभी हम Action करते हैं फिर उसी action से हमें मिलता है। तो इससे यह पता चलता है कि जैसा हम सोचते हैं वैसे ही हमारी लाइफ बन जाती है आज जो लाइफ हम जी रहे हैं इसके पीछे वही विचार हैं जो कभी ना कभी हमने सोचे थे जिन्हें हम शायद अब भूल भी गए हैं।
4.) बेडर मैनहोफ इफ़ेक्ट (Baader mainhoff effect)
जब आप कोई नया word याद करते हो तो वह word आपको कई जगह दिखाई देता है जबकि उस word को सीखने से पहले ऐसा नहीं था। जब आप कोई कार या बाइक खरीदते हो तो आपको सड़कों पर वही मॉडल दिखाई देने लगता है ऐसे ही मान लो आप कोई नए टीवी शो देखते हो तो आपको वही टीवी शो के बारे में हर जगह जानकारी दिखेगी इस चीज को Baader mainhoff effect कहते हैं इस इफ़ेक्ट के दो कारण हैं
पहला यह कि जो हमने देखा है हमारा दिमाग उस पर और भी नई जानकारी जुटाने लगता है। और दूसरा यह कि जब भी आप कुछ नई चीज से रिलेटेड कुछ देखोगे तो आपका दिमाग फौरन उसी चीज को आप को प्रूफ के तौर पर याद दिलाएगा।
5.) सिमिलेरिटी अट्रैक्शन सिद्धांत (similarity attraction principle)
इस सिद्धांत के अनुसार हम उन चीजों के प्रति ज्यादा अट्रैक्ट होते हैं जो हमारी तरह ही होती हैं जैसे हम उन लोगो के साथ ज्यादा कंफर्टेबल महसूस करते हैं जो हमारी तरह होते हैं हमारी तरह दिखते हैं या हमारी तरह ही सोच रखते हैं।
जैसे आप कहीं बाहर जाते हो या बाहर देश में पढ़ते हो तो आप अपने देश के लोगों के बीच ही ज्यादा कंफर्टेबल महसूस करेंगे यानी कि हम खुद से similar लोगों की तरफ ही ज्यादा अट्रैक्ट होते हैं विदेश में इंडियन मिल जाएगा तो आपको बहुत अच्छा लगेगा ऐसे ही अगर कोई इंसान हमें एडवाइज देगा तो हम उसकी बात ज्यादा मानेंगे जो हमसे similar सोच रखता है। अगर हम पॉजिटिव थिंकिंग रखेंगे और पॉजिटिव रहेंगे तो हम अपने जैसे लोगों की तरफ ज्यादा अट्रैक्ट होंगे और वैसे ही लोगों को अपनी तरफ अट्रैक्ट करेंगे।
6.) the 18/20 principle
18/20 प्रिंसिपल जिसको परेटो प्रिंसिपल भी कहते हैं आपकी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में काम आता है। यह प्रिंसिपल विल्फ्रेड परेटो नाम के इटालियन इकोनॉमिस्ट ने दिया था। उन्होंने देखा कि इटली में 18% जमीन केवल 20% लोगों के हाथ में है। बाद में उन्होंने यही पैटर्न कहीं जगह देखा यह प्रिंसिपल बताता है कि 18% इफेक्ट 20% कोशिश की वजह से होते हैं। तो यह इफ़ेक्ट रियल लाइफ में कैसे काम करता है?
50% पैसा जो आप किसी बिजनेस से कमाते हैं वह उसके 20% कस्टमर ही लत लाकर देते हैं। इसका एक और उदाहरण यह है कि 80% कंप्लेन केवल 20% कस्टमर ही करते हैं इसके अलावा 80% जरूरी काम आपके ऑफिस के 20% लोग ही करते हैं। इस सिद्धांत के ऐसे ही बहुत सारे उदाहरण हैं लेकिन इसे हम अपनी जिंदगी में कैसे अप्लाई करें?
बहुत आसान है सबसे पहले आप अपने डेली या मंथली प्लांस बनाएं और उसमें से सबसे जरूरी काम देखो यह देखो कि कौन सा सबसे जरूरी काम है जो आपको बहुत ज्यादा रिटर्न्स देंगे आप देखेंगे कि आप के 20% ऐसे काम होंगे जो आपको 80% परसेंट रिजल्ट दे रहे होंगे तो अब आपको वह 20% कामों को पहले करना चाहिए।
7.) सहज गुण स्थानांतरण (Spontaneous treat transference)
यह एक साइकोलॉजिकल प्रोसेस है मान लो आप अपने किसी दोस्त को अपने ऑफिस वर्कर के बारे में बता रहे हो तो जिस तरीके से आप उसको अपने फ्रेंड के सामने उसको describe करोगे आपका दोस्त भी आपको उसी तरीके से देखेगा। जैसे आप अपने किसी दोस्त को बताते हो कि वह फलाना वर्कर कामचोर है तो आपका दोस्त आपको कामचोर समझेगा वही क्वालिटी वह आपमें देखेगा। लेकिन अगर आप अपने दोस्त को बोलते हो कि वह बहुत मेहनती है, बहुत हार्ड वर्क है, बहुत समझदार है तो आपका फ्रेंड भी आपको यही सब समझेगा। जैसे आप दूसरे को Describe करोगे आपको भी वैसा ही समझा जाएगा।
सन 2011 में वेल्स में हुई रिसर्च में यह प्रूफ हुआ कि जब आप किसी के बारे में बताते हो तो इससे आपका नजरिया लोगों को पता चलता है और और कहीं ना कहीं इसमें आप भी अपनी पर्सनालिटी reveal कर रहे होते हो इसलिए हमें फालतू की बातों से बचना चाहिए क्योंकि हम जाने अनजाने में सामने वाले को किसी और की बुराई के अलावा उसकी और भी कई बातें बता देते हैं।
8.) Cognitive dissonance (संज्ञानात्मक मतभेद)
हम सब एक perspective और belief को लेकर बड़े होते हैं जो हमें हमारी फैमिली और फ्रेंड से मिलते हैं। हम अपने जैसे perspective वाले लोगों के साथ आसानी से घुलमिल जाते हैं। अब असली दिक्कत तब आती जब हमें कोई अलग perspective वाला इंसान मिलता है जिसके आइडियाज और सोच अलग है तब ऐसी जगह पैदा होते कॉग्निटिव डिसोनेंस ऐसे में हमारा दिमाग समझ ही नहीं पाता कि दो आईडिया जो एक दूसरे को oppose करते हैं उनमें से कौन सा माना जाए यहां पर आपको फैक्ट चेक करने होंगे कंपेयर करना होगा अपने बिलीफ और सामने वाले के बिलीफ़ से इतनी हिम्मत भी रखनी होगी कि अगर आपका बिलीफ गलत है तो उसे गलत मानना होगा।
कई बार हम अपनी आदत और अपने बिलीफ को लेकर कंफ्यूज हो जाते हैं मान लो आप स्पोर्ट्स कार के शौकीन भी हो जो कि काफी ज्यादा पॉल्यूशन करती हो और फ्यूल पीती है अब यह बिलीफ एक दूसरे को oppose करते हैं या तो आप वातावरण की इतनी फिक्र मत करो उसके बारे में इतना मत सोचो या फिर अपने शौक को छोड़ दो मतलब स्पोर्ट्स कार चलाना बंद कर दो तो आपके दिमाग को कोई एक बिलीफ मानना पड़ेगा तभी वह इस स्ट्रेस से निकल पाएगा कॉग्निटिव डिसॉनेन्स सट्रेस पैदा करता है। तो ऐसे ही हम एक बिलीफ बनाने से इससे बच सकते हैं।
9.) mere exposure effect (मात्र जोखिम प्रभाव)
किसी नए आइडिया और नाइट आदतों या किसी नए इंसान में कंफर्टेबल होने का सबसे बढ़िया तरीका है कि आप उस इंसान के साथ धीरे धीरे एक्सपोज करो मेयर एक्स्पोज़र इफेक्ट एक साइकोलॉजिकल थ्योरी है जो बताती है कि इंसान उस इंसान के साथ ज्यादा कंफर्टेबल होता है जिसके साथ वह familier होता है। अब मान लो कि आपने नए कॉलेज में एडमिशन लिया है आप नए नए लोगों से मिलते हैं तो शुरुआत में आपको उनके साथ बहुत अनकंफरटेबल ही फील होता है लेकिन लेकिन जैसे ही आप धीरे-धीरे खुद को उनके साथ एक्सपोज करोगे यानी कि मुझसे मिलोगे उनसे बातें करोगे उनको बताओगे उनके बारे में जानोगे तो आप उनके साथ काफी कंफर्टेबल फील करने लगोगे।
ऐसे ही मान लो अगर आपको बदलाव पसंद नहीं है आप अपना काम वही पुराने टाइपराइटर पर करते आ रहे हैं और अचानक से आपके सामने लैपटॉप रख दिया जाए तो आप उसे तुरंत पसंद नहीं करोगे लेकिन आप धीरे-धीरे उसके साथ एक्सपोज करेंगेतो ऐसा भी हो सकता है कि आप लैपटॉप को ज्यादा पसंद करने लगे।
इसलिए नई चीजों के साथ familier होने का सबसे अच्छा तरीका है कि उसके साथ आप धीरे धीरे खुद को ढलने दो।
यह सब कुछ साइकोलॉजिकल फैक्ट जो आपको स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता लेकिन यह लाइफ में बहुत काम आते अगर आप लाइफ में कुछ बड़ा करना चाहते हो तो इसे सीखना और सही जगह अप्लाई करना बहुत जरूरी है।