हमारी लाइफ और हमारे बिहेवियर का 95% कंट्रोल हमारे सबकॉन्शियस माइंड(अवचेतन मन) के पास होता है और जबकि हमारा कॉन्शियस माइंड(चेतन मन) जिसके पास हमारी क्रिएटिविटी, लॉजिक इमैजिनेशन है उसके पास हमारी लाइफ का सिर्फ 5% कंट्रोल होता है बस मुश्किल यह है कि सबकॉन्शियस माइंड थोड़ा ट्रिकी है आसानी से कुछ भी नहीं सीखता हम बुक, लेक्चर और एजुकेशन सिस्टम के द्वारा जो भी कुछ सीखते हैं वह सारी बातें सिर्फ हमारे कॉन्शियस माइंड तक ही पहुंचती है तो आखिर यह सबकॉन्सियस माइंड सीखता कैसे हैं?
आपने लोगों को यह कहते हुए जरूर सुना होगा कि बच्चों के सामने जैसा करो वह वैसा ही सीखते हैं यह बात साइंटिफिकली भी हंड्रेड परसेंट सच है 7 साल की उम्र तक हम जो भी सीखते हैं वह हमारे सबकॉन्शियस माइंड में अच्छे से बैठ जाता है और यही प्रोग्राम हमारी आने वाली पूरी जिंदगी को कंट्रोल करता है शायद इसीलिए अमीर लोगों के बच्चे और अमीर हो जाते हैं और गरीब लोगों के बच्चे गरीब ही रह जाते हैं द बायलॉजी ऑफ बिलीफ बुक के लेखक डॉक्टर ब्रूस लिप्टन कहते हैं कि यह सभी कुछ सबकॉन्शियस माइंड का खेल है।
हम डिस्कवरी पर देखकर हैरान होते हैं कि लोग शेर पालते हैं मगरमच्छ पालते हैं लेकिन यह सब कैसे पॉसिबल है? जी हां यह इसलिए पॉसिबल है क्योंकि वह बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें इंसान के बीच में लाकर रख देते हैं। एक शेर कभी समझ नहीं पाता कि वह शेर है यह मदर नेचर का law है कि लाइफ के पहले कुछ सालों में चाहे वह इंसान हो या जानवर यह समझता है कि वह क्या है ताकि वह अपनी फैमिली और कम्युनिटी में फिट हो सके।
अगर हम 7 साल के बच्चे की बात करें तो उनके ब्रेन में लो फ्रिकवेंसी और लो वाइब्रेशन होती है यह एक तरह की वेव्स होती हैं इन वेव्स के कारण ही बच्चे गुड्डा गुड़िया का का खेल खेलते हैं इन्हीं वेव्स के कारण बच्चे अपने मां बाप और आसपास के लोगों को देखकर सीखते हैं बच्चों के आस पास जो भी होता है वह उन्हें समझ तो नहीं आता लेकिन वह उन्हें रिकॉर्ड जरूर कर लेते हैं।
जैसे अगर आप बच्चों को कहते हैं कि तुमसे नहीं हो पाएगा तुम नहीं कर पाओगे तो पूरी जिंदगी बच्चा कॉन्फिडेंट फील नहीं कर पाएगा उसका सबकॉन्शियस माइंड पूरी कोशिश करेगा कि उसका प्रोग्राम सही साबित हो इसीलिए वह उसके हर एक एक्शन को इस तरह शेड्यूल करेगा कि वह कुछ भी सक्सेसफुल करने से डरता रहेगा।
लेखक कहते हैं एक मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुआ बच्चा हमेशा पैसा बचाने के बारे में सोचेगा रिस्क लेने से डरेगा और कुछ बड़ा नहीं सोच पाएगा क्योंकि उसके अंदर यह बात बैठी हुई है कि अच्छा खाना एक छोटा सा घर और एक छोटी सी फैमिली बस यही काफी है। वहीं एक अमीर बिजनेस क्लास से बिलॉन्ग करने वाला करोड़ों रुपए का रिस्क ले लेगा।
अगर आपके अंदर गुस्सा ही प्रोग्राम्ड है तो फिर आप चाह कर भी अपना गुस्सा नहीं रोक पाओगे शायद इसीलिए कई अपराधी घिनौना काम करके भी पछताते नहीं हैं क्योंकि उनके सबकॉन्शियस माइंड को यह गलत नहीं लगता क्योंकि यह उनके प्रोग्राम के अकॉर्डिंग ही होता है।
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अब इतना तो हम समझ गए कि हमें अपनी जिंदगी बदलने के लिए अपने सबकॉन्शियस माइंड के प्रोग्राम को बदलना होगा पर अब यह करना कैसे है?
सबकॉन्शियस माइंड दो तरीकों से सीखता है
पहला तरीका है hipnosis – जिसे हम लाइफ की शुरुआत के कुछ सालों में सीखते हैं
और दूसरा है Repetition – जब हम गाड़ी चलाना सीखते हैं तो कुछ हफ्तों तक तो हमें Effort लगाना पड़ता है लेकिन उसके बाद वह हमारे सबकॉन्शियस माइंड में प्रोग्राम हो जाता है और हम बिना अपना ज्यादा दिमाग लगाये गाड़ी को अच्छे से चला पाते हैं यही है रिपीटेशन कि Strength याने अगर आप किसी काम को रिपीट करोगे तो वह आपके सबकॉन्शियस माइंड के प्रोग्राम में चला जाएगा इसीलिए कई मोटिवेशनल स्पीकर्स कहते हैं कि जब तक आप कुछ पा ना लो तब तक उसे मन में दोहराते रहो जैसे आप जब तक सक्सेसफुल ना हो जाओ तब तक खुद से कहते रहो कि आप सफल हो आप जब तक खुश ना हो जाओ तब तक खुद से कहते रहो कि आप बहुत खुश हो लेखक कहते हैं कि ऐसा करके आप अपने सबकॉन्शियस माइंड को समझा रहे हो और वह जब समझ जाएगा तब आपको वह मिलेगा जो आप चाहते हो।
अब Repetition कैसे करें
लेखक कहते हैं कि सबसे पहले जो आप चाहते हो उसे रिकॉर्ड करो सोते टाइम उसे हेडफोन लगाकर सुनो जब आपको नींद आने वाली होती है तब आपका कॉन्शियस माइंड सरेंडर कर देता है और उसका चार्ज सबकॉन्शियस माइंड ले लेता है इस प्रक्रिया में आपके दिमाग में वही वेव्स होती हैं जो एक 7 साल के बच्चे में थी इसे ऑटो हिप्नोसिस कहते हैं यह वही स्टेज है जब आप अपने सबकॉन्शियस माइंड में अपने पसंद का प्रोग्राम फीड कर सकते हैं आप अपने सभी साइकोलॉजिकल और बिहेवियरल प्रॉब्लम का solution निकाल सकते हो।
डॉक्टर लिप्टन हमेशा अपनी क्लास में जींस और जेनेटिक्स के बारे में पढ़ाया करते थे जिसके हिसाब से हम जो हैं जैसे हैं अपने जेनेटिकल मेकअप के हिसाब से हैं हमारे जींस डिसाइड करते हैं कि हमारी हेल्थ कैसी होगी लेकिन Stem Cells पर रिसर्च करने के बाद उन्होंने एपीजेनेटिक्स कॉन्सेप्ट दिया है जिसमें उन्होंने बताया कि हम जेनेटिकल मेकअप के साथ तो पैदा होते हैं लेकिन हमारे अंदर कौन सा जीन कितना एक्सप्रेस होगा यह हमारे आसपास के वातावरण पर डिपेंड करता है डॉक्टर लिप्टन को यह एहसास हुआ कि उन्होंने आज तक अपनी क्लास में जो भी पढ़ाया था वह सब गलत था उन्होंने इस सारी प्रक्रिया को एपीजेनेटिक्स का नाम दिया उस समय उन्हें अपने इस कांसेप्ट के लिए बहुत मुश्किल और मुसीबतों का सामना करना पड़ा।
लेकिन आज यह साइंस प्रूफ कर चुका है कि एपीजेनेटिक्स का हमारी ओवरऑल ग्रोथ और हेल्थ पर बहुत ज्यादा असर होता है एपीजेनेटिक्स को प्रूव करने वाला एक मॉडल है जिसको प्लेसिबो थेरेपी कहते हैं
प्लेसिबो थेरेपी में पेशेंट को कुछ ऐसी दवाइयां देते हैं जो असल में पेशेंट पर कुछ असर नहीं करती लेकिन पेशेंट को यह बताया जाता है कि यह दवाई आप की बीमारी का रामबाण इलाज है और सच में पेशेंट उस दवा से ठीक हो जाता है। यानी कि इस केस में दवाई नहीं पेशेंट का उस दवाई पर बिलीफ उसे ठीक कर देता है आज कल डॉक्टर कई बड़ी बड़ी बीमारियों के लिए भी प्लेसिबो थेरेपी का उपयोग कर रहे हैं ।
जिस तरह पॉजिटिव थिंकिंग और पॉजिटिव बिलीफ ऑफ आपकी हेल्थ को किसी चमत्कार की तरह ठीक कर सकता है उसी तरह नेगेटिव थिंकिंग और नेगेटिव बिलीफ आपकी हेल्थ को खराब भी कर सकता है इसे नोसिबो कहते हैं।
अगर हम जेनेटिक्स की माने तो हमें हमेशा विक्टिम जैसा महसूस होगा यानी कि अगर हमारे जींस में कैंसर ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियां है तो हमें भी हो जाएंगी क्योंकि जेनेटिक्स पर हमारा ऐसा पूरा विश्वास है और इसीलिए हमें यह सब बीमारियां हो जाएंगी अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे होता है?
इसलिए क्योंकि नेगेटिव थिंकिंग स्ट्रेस पैदा करती है और स्ट्रेस अपने आप में कई बीमारियों की जड़ है जैसे ही हम स्ट्रेस फील करते हैं हमारी बॉडी कोर्टिसोल नामक हारमोन रिलीज करती है या हार्मोन हमें तुरंत किसी फिजिकल एक्शन के लिए तैयार करता है यह हमारे लीवर, पेट के खून का फ्लो हमारे हाथ की तरफ भेजता है ताकि हम तुरंत एक्शन ले सके और अगर हम इस हार्मोन के साथ लंबे समय तक स्थिर रहे तो हमें कई तरह की बीमारियां हो सकती है इसी के साथ-साथ यह स्ट्रेस हमारे इम्यून सिस्टम को भी बिगाड़ देता है क्योंकि स्ट्रेस में हमारे दिमाग को सिग्नल जाता है कि कुछ गड़बड़ है अक्सर देखा जाता है कि जो लोग स्ट्रेस में रहते हैं वह ज्यादा बीमार पड़ते हैं क्योंकि उनका शरीर सारी बातें छोड़ कर स्ट्रेस को खत्म करने में लगा रहता है।
तो दोस्तों अगर हम अपने जींस और जेनेटिक्स पर ही भरोसा कर बैठ जाए तो हम विक्टिम बन जाएंगे और अगर हम एपीजेनेटिक्स के सिद्धांतों को समझें और अपने बॉडी और अपने माइंड को प्रोग्राम करना सीख जाएं तो हम एक विक्टिम से सर्वाइवर बन सकते हैं और एक फाइटर बन सकते हैं।