25 हरिवंशराय बच्चन के अनमोल विचार | Harivansh Rai Bachchan Quotes In Hindi
हरिवंशराय बच्चन के अनमोल विचार | Harivansh Rai Bachchan Quotes In Hindi
◆ मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
◆ मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रूलाती भीतर
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ।
◆ असफलता एक चुनौती हैं,
स्वीकार करो क्या कमी रह गयी,
देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो,
नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किये बिना ही जय जय कर नहीं होती
कोशिश करनेवालों की हर नहीं होती।
◆ मैं निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
◆ प्यार किसी को करना, लेकिन कहकर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर औरों को अपनाना क्या।
◆ मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता।
◆ मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुःख दोनों में मग्न रहा करता हूँ,
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों में मस्त बहा करता हूँ।
◆ मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूमे, झुके, लहराए ,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
◆ जो बीत गयी सो बात गयी,
जीवन एक सितारा था,
माना वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अम्बर के आनन् को देखो.
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छुट गए फिर कहा मिले,
पर बोले टूटे तारों पर,
कब अम्बर शोक मनाता हैं
जो बीत गयी सो बात गयी।
◆ आज अपने ख़्वाब को मैं सच बनाना चाहता हूँ,
दूर की इस कल्पना के पास जाना चाहता हूँ।
◆ कभी फूलों की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोंगे बिखर जाओंगे,
जीना हैं तो पत्थर बन के जियो,
किसी दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओंगे।
◆ कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !
◆ मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता,
शत्रु मेरा बन गया हैं छल रहित व्यवहार मेरा
◆ एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला;
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मानती मधुशाला.
◆ तू ना थकेगा कभी ना थमेगा कभी,
तू ना मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ,
अग्रिपथ, अग्रिपथ, अग्रिपथ।
◆ उतर नशा जब उसका जाता,
आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी,
बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला;
जीवन की संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते;
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला”
◆ नफरत का असर देखो,
जानवरों का बंटवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गई और बकरा मुसलमान हो गया,
मंदिरों में हिन्दू देखे, मस्जिद में मुसलमान,
शाम को जब मयखाने गया, तब दिखे इंसान।
◆ गिरना भी अच्छा है औकात का पता चलता है,
बढ़ते है जब हाथ उठाने को, अपनी का पता चलता है,
जिन्हें घुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते है,
मैंने झूठो को अक्सर मुस्कुराते हुए देखा है,
सीख रहा हूँ मैं भी अब इंसानों को पढने का हुनर,
सुना है चेहरे पे किताबो से ज्यादा लिखा होता है।
◆ इस पार प्रिय मधु तुम हो,
उस पार ना जाने क्या होगा,
यह चाँद उदित होकर नभ में,
कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरा लहरा यह सखाए,
कुछ शोक भुला देती मन का।
◆ चाहे जितना पी तू प्याला,
चाहे जितना बन मतवाला,
सुन भेद बताती है अंतिम,
यह शांत नहीं होगी ज्वाला,
मैं मधुशाला की मधुबाला।
◆ चाहे जितना तू पी प्याला,
चाहे जितना बन मतवाला,
सुन भेद बताती हूँ अंतिम,
यह शांत नहीं होगी ज्वाला,
मैं मधुशाला की मधुबाला।
◆ मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों में दो तार लिए फिरता हूँ।
◆ “तू न थकेंगा कभी, तू न थमेंगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ कर शपथ कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ, अग्निपथ।
◆ मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
◆ बैठ जाता हूँ, मिट्टी पर अक्सर,
क्योंकि मुझे मेरी औकात अच्छी लगती हैं,
मैंने समन्दर से सीखा हैं, जीने का सलीका,
चुपचाप से रहना और मौज में रहना।