मिर्ज़ा ग़ालिब के अनमोल विचार, शेर | Mirza Ghalib Quotes In Hindi
मिर्ज़ा ग़ालिब के अनमोल विचार, शेर | Mirza Ghalib Quotes In Hindi
ये चंद दिनों की दुनिया है यहां संभल के चलना ग़ालिब, यहां पलकों पर बिठाया जाता है नजरों से गिराने के लिए!
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब,
ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथों में।
कुछ इस तरह मैंने ज़िंदगी को आसां कर लिया;
किसी से माफी मांग ली, किसी को माफ कर दिया।
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है?
आखिर इस दर्द की दवा क्या है?
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले; बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।
मेहरबां हो के बुला लो, मुझे चाहो जिस वक़्त,
मैं गया वक़्त नहीं हूं कि फिर आ भी ना सकूं।
इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
रफ्तार कुछ जिंदगी की यूं बनाए रख ग़ालिब,
कि दुश्मन भले आगे निकल जाए पर दोस्त कोई पीछे न छूटे।
कहते हैं जिसको इश्क,
खराबी है दिमाग की।
गुजर जाएगा ये दौर भी ग़ालिब ज़रा इत्मीनान तो रख;
जब ख़ुशी ही ना ठहरी तो ग़म की क्या औकात है..।
रहने दे मुझे इन अंधेरों में ‘ग़ालिब’ कमबख्त रोशनी में अपनों के असली चेहरे सामने आ जाते हैं।
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को ग़ालिब, ये ख्याल अच्छा है।
सुना है वह दुख में होते हैं तो मुझे याद करते हैं ग़ालिब., कि अब मैं उसके लिए खुशी की दुआ करूं या गम की..!
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज-ए- बयां और..।
किसी की क्या मजाल थी जो हमें खरीद सकता,
हम तो खुद ही बिक गये, खरीदार देख के।
जिंदगी उसकी जिसकी मौत पे जमाना अफसोस करे ग़ालिब;
यूं तो हर शख्स आते हैं इस दुनिया में मरने के लिए।
रात दिन गर्दिश में है सातों आसमां,
होता रहेगा कुछ न कुछ घबराएं क्या!
मुस्कान बनाए रखो तो सब साथ हैं ग़ालिब,
वरना आंसुओं को तो आंखों में भी पनाह नहीं मिलती।
चांदनी रात के खामोश सितारों की क़सम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं।
हुस्न ग़मज़े की कशाकश से छूटा मेरे बाद,
बारे आराम से हैं एहले-जफ़ा मेरे बाद।
उड़ने दे परिंदों को आज़ाद फ़िज़ा में ग़ालिब,
जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएंगे।
हैरां हूं तुझे मस्जिद में देखकर ग़ालिब,
ऐसा भी क्या हुआ जो खुदा याद आ गया।
उनके देखे से जो आ जाती है मन पर रौनक,
वो समझते हैं, बीमार का हाल अच्छा है।
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।
मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब,
मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी।
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।
हाथों की लकीरों पे, मत जा- ए- ग़ालिब; किस्मत उनकी भी होती है, जिनके हाथ नहीं होते।
आता है कौन-कौन तेरे गम को बांटने गालिब,
तु अपनी मौत की अफवाह उड़ा के देख।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब, मैं अपने दुखों में रहता हु नवाबों की तरह।
हम तो फना हो गए उनकी आंखे देखकर ग़ालिब,
ना जाने वो आइने कैसे देखते होंगे…!