महाभारत के अनमोल विचार | Mahabharat Quotes In Hindi
महाभारत के अनमोल विचार | Mahabharat Quotes In Hindi
क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है।
अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है।
अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परन्तु परिश्रम के बिना संसार में सब फीका है।
जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में
सम भाव से रहने वाले
अविनाशी परमेश्वर को देखता है,
वही सत्य को देखता है।
जो सज्जनता का अतिक्रमण करता है। उसकी आयु ,संपत्ति ,यश ,धर्म ,पुण्य, आशीष ,श्रेय नष्ट हो जाते है।
यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है।
ज्ञानरूप, जानने योग्य और ज्ञान से प्राप्त होने वाला परमात्मा सबके हृदय में विराजमान है।
जिसे सत्य पर विश्वास होता है,
और जो अपने संकल्प पर दृढ होता है,
उसका सदैव कल्याण होता रहता है।
सत्य ही धर्म, तप और योग है। सत्य ही
सनातन ब्रह्मा है,
सत्य को ही परम यज्ञ कहा गया है तथा
सब कुछ सत्य पर ही टिका है।
जिस परिवार व राष्ट्र में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता,
वह पतन व विनाश के गर्त में लीन हो जाता है।
अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो,
विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता।
लोभी मनुष्य किसी कार्य के दोषों को नहीं समझता,वह लोभ और मोह से प्रवृत्त हो जाता है।
अत्यंत लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं।
अपने पूर्वजों का सम्मान करना चाहिए।
उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए।
उनके दिए उपदेशों का आचरण करना चाहिए।
गहरे जल से भरी हुई नदियां समुद्र में मिल जाती हैं परंतु जैसे उनके जल से समुद्र तृप्त नहीं होता,
उस प्रकार चाहे जितना धन प्राप्त हो जाए,
पर लोभी तृप्त नहीं होता।
परिवर्तन इस संसार का अटल नियम है,
और सब को इसे स्वीकारना ही पड़ता है;
क्योकी कोई इसे बदल नही सकता।
अहंकार मानव का और मानव समाज का
इतना बङा शत्रु है, जो सम्पुर्ण मानव जाति के
कष्ट का कारण और अन्ततः विनाश का द्वार बनता है।
राजधर्म एक नौका के समान है, यह नौका
धर्म रूपी समुद्र में स्थित है।
सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है,
धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है।
व्यक्ति को अभिमान नहीं करना चाहिए
नहीं तो दुर्योधन जैसा हाल होगा।
जुआ खेलना अत्यंत निष्कृष्ट कर्म है.
यह मनुष्य को समाज से गिरा देता है।
संसार में वही मनुष्य प्रशंसा के योग्य है,
वही उत्तम है,
वही सत्पुरुष और वही धनी है,
जिसके यहाँ से याचक या शरणागत
निराश न लौटे।
आत्म -ज्ञान की तलवार से काटकर
अपने ह्रदय से
अज्ञान के संदेह को अलग कर दो।
अनुशाषित रहो, उठो।
जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता,
बल्कि सावधानी के साथ
उद्यम का आश्रय लेता है
तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है,
उसके शत्रु पराजित ही हैं।
जैसे तेल समाप्त हो जाने पर
दीपक बुझ जाता है,
उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर
भाग्य भी नष्ट हो जाता है।
प्रिय वस्तु प्राप्त होने पर भी तृष्णा तृप्त नहीं होती,
वह ओर भी भड़कती है जैसे ईधन डालने से अग्नि।
सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा
धर्म से आयु बढ़ती है।
नारी प्रकृति की बेटी है, उस पर क्रोध मत करो,
उसका हृदय कोमल है, उस पर विश्वास करो।
सत्पुरुष दूसरों के उपकारों को ही याद रखते हैं,
उनके द्वारा किए हुए बैर को नहीं।
विधि के विधान के आगे कोई नही टिक सकता ।
एक पुरुर्षाथी को भी वक्त के साथ
मिट कर इतिहास बन जाना पड़ता है।
अपनी दृष्टि सरल रखो, कुटिल नहीं.
सत्य बोलो, असत्य नहीं.
दूरदर्शी बनो, अल्पदर्शी नहीं.
परम तत्व को देखने का प्रयास करो,
क्षुद्र वस्तुओं को नहीं।
उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है,
ना कभी था ना कभी होगा
जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे
कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।
एक मनुष्य को अपनी मातृभूमि
सर्वोपरि रखनी चाहिए
और हर परिस्थत मे उसकी रक्षा करनी चाहिए।
जो मनुष्य अपने माता-पिता
की सेवा पुरे सद्भाव से करते है,
उनकी ख्याति इस लोक मे ही
नही बल्कि परलोक मे भी होती है।
जैसे बिना नाविक की नाव जहाँ कहीं भी जल में बह जाती है और बिना सारथी का रथ चाहे जहाँ भटक जाता हैउसी प्रकार सेनापति बिना सेना जहाँ चाहे भाग सकती है।