मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जीवन परिचय | Maulana Abul Kalam Azad Biography In Hindi

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जीवन परिचय, शिक्षा, स्वतंत्रता की लड़ाई, उपलब्धियां, मृत्यु (Maulana Abul Kalam Azad Biography In Hindi)

मौलाना अबुल कलाम आजाद को जानना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में और भी कई क्षेत्रों में अद्वितीय रहा है। उनका असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था, पर हम उन्हें मौलाना आजाद के नाम से पहचानते हैं।

मौलाना आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण सेनानी थे और उनका योगदान देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। वे एक प्रमुख विद्वान थे और साथ ही एक कवि भी थे। उन्होंने कई भाषाओं जैसे कि अरबी, इंग्लिश, उर्दू, हिंदी, पर्शियन और बंगाली में अपनी बुद्धिमानी ओर योग्यता का परिचय दिया

उन्होंने धर्म के एक संकीर्ण दृष्टिकोण से मुक्ति पाने के लिए अपना उपनाम “आज़ाद” रख लिया।उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में भारत सरकार में भी कार्य किया और उनका योगदान शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया और शिक्षा में सुधार के लिए प्रयास किया। उनका योगदान इतना महत्वपूर्ण था कि उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

उन्होंने धर्म, भाषा, और साहित्य के क्षेत्र में अपने विचारों को साझा किया और देशवासियों को जागरूक किया। मौलाना आजाद का योगदान आज भी हमें एक सशक्त राष्ट्र की ऊँचाइयों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और उन्हें समर्पण और कृतज्ञता से याद किया जाता है।

Maulana Abul Kalam Azad Biography In Hindi

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जीवन परिचय – Maulana Abul Kalam Azad Biography In Hindi

पूरा नाम – अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन

जन्म – 11 नवम्बर 1888, मक्का, सऊदी अरब

पिता – मुहम्मद खैरुद्दीन

पत्नी – जुलेखा बेगम

नागरिकता – भारतीय

अवार्ड – भारत रत्न

राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

मृत्यु – 22 फ़रवरी 1958 नई दिल्ली

मौलाना आज़ाद का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (Maulana Azad Early life and Education)

मौलाना अबुल कलाम आजाद एक बड़े भारतीय नेता थे जिनका जन्म 11 नवंबर 1888 को हुआ था। उनके परिवार का इतिहास बहुत पुराना है, उनके परदादा अफ़ग़ानिस्तान से भारत आए थे। मौलाना आजाद के पिताजी एक मुस्लिम विद्वान थे और उनकी माँ अरब देश की थी।

उनके जीवन की शुरुआत कुरान और इस्लामी शिक्षा से हुई, जो उनके परिवार की परंपरा थी। पहले उनके पिताजी ही उनके शिक्षक थे, पर बाद में उन्हें बड़े अच्छे अध्यापकों से गृह शिक्षा मिली। उन्होंने अरबी, फ़ारसी, गणित, और बौद्धिक विषयों में अच्छे से पढ़ाई की।

आपको इसे जानकर हैरानी हो सकती है कि उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी, जो उस समय भारत में आम बात नहीं थी। लेकिन उन्होंने यह सब सीखा और एक बहुदिशी व्यक्ति बने।

1857 के विद्रोह के समय, मौलाना आजाद ने भारत को छोड़कर अरब जाने का निर्णय लिया। वहां ही, उनका जन्म हुआ, जब मौलाना आजाद दो साल के थे, तो 1890 में उनका परिवार भारत वापस लौटा और कोलकाता में बस गया। मौलाना आजाद की शादी जुलेखा बेगम से 13 साल की आयु में हुई।

आजाद जी ने अपने युवा दिनों में ही पत्रिकाओं में काम करना शुरू किया था, और वे साप्ताहिक समाचार पत्र “अल-मिस्वाह” के संपादक बन गए थे। इसके साथ ही, उन्होंने पवित्र कुरान के सिद्धांतों की व्याख्या भी की। इस समय उनकी दृष्टिकोण बहुत कट्टरपंथी थी, लेकिन बाद में भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ, उनका सोचने का तरीका बदल गया। उन्होंने ब्रिटिश राज और मुस्लमानों के साम्प्रदायिक मुद्दों को तवज्जो नहीं देने का स्थान लिया और माना कि देश की आजादी इन सभी मुद्दों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

आजाद जी ने अपनी यात्रा के दौरान अफगानिस्तान, इराक, मिस्र, सीरिया, और तुर्की की भी यात्रा की, जहां उनकी सोच में बदलाव हुआ और उन्होंने राष्ट्रवादी क्रांतिकारी के रूप में देश की सेवा करने की बात ठान ली!

भारत लौटने के बाद, वह प्रमुख हिन्दू क्रांतिकारियों श्री अरबिंदो और श्याम सुन्दर चक्रवर्ती से प्रभावित हुए, और आजाद जी ने उनके साथ मिलकर सक्रिय रूप से स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया। उन्होंने देखा कि क्रांतिकारी गतिविधियों की बुनियाद सिर्फ बंगाल और बिहार तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, इस दौरान उन्होंने उत्तरी भारत और बंबई में गुप्त क्रांतिकारी केंद्रों की स्थापना में मदद की। उनका यह समर्थन उस समय बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इन केंद्रों में अधिकतर क्रांतिकारी मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे, और उन्होंने इससे मुस्लिम विरोधी सोच को बदलने के लिए कई कोशिशें कीं।

आपसी एकता और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ अपनी स्थिति से ही आजाद जी ने उत्तरी भारतीय समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन किया। वे बंगाल के विभाजन के खिलाफ थे और सांप्रदायिक अलगाववाद के खिलाफ बोलते थे। उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की याचिका को खारिज किया और देश की एकता की बढ़ती हुई आवश्यकता को समझाया।

आपसी समझ और सहयोग के बावजूद, आजाद जी ने देखा कि मुस्लिम समुदाय में भी आपसी विवाद और द्वेष की बुनियाद रखने वाले व्यक्तियों की कमी नहीं हैं। उन्होंने इस दिशा में अपने सहयोगियों की उपेक्षा करते हुए मुस्लिम समाज में समाजसेवा और सशक्तिकरण की दिशा में कई कदम उठाए।

मौलाना आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई

1912 में, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने ‘अल हिलाल’ नामक हफ्तावारी उर्दू पत्रिका की शुरुआत की थी ताकि मुस्लिमों के बीच देशभक्ति भावना को बढ़ावा मिल सके। ‘अल हिलाल’ ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मोर्ले-मिंटो सुधारों से उत्पन्न तनावों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह पत्रिका एक क्रांतिकारी मंच के रूप में सामने आयी और गदर पार्टी के विचारों को आवाज देने का कार्य किया। हालांकि, 1914 में सरकार ने अल हिलाल को अलगाववादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के कारण प्रतिबंधित कर दिया।

इसका जवाब देते हुए, मौलाना आज़ाद ने भारतीय राष्ट्रवाद और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर आधारित क्रांतिकारी विचारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 1916 में ‘अल बलाघ’ नामक एक और हफ्तावारी पत्रिका शुरू की। दुःखजनक है कि सरकार ने इस पत्रिका पर भी प्रतिबंध लगा दिया। मौलाना आज़ाद को कलकत्ता से निकाला गया और उन्हें रांची में नजरबंद कर दिया गया। उन्हें पहले विश्व युद्ध के बाद, 1920 में रिहा किया गया।

उनके रिहाई के बाद, आज़ाद ने खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को जागरूक करने में सक्रिय भूमिका निभाई। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था कि ब्रिटिश प्रमुख ने तुर्की पर कब्ज़ा कर लिया था और खिलाफत को पुनः स्थापित किया जाए। मौलाना आज़ाद ने 1920 में शुरू हुए गांधीजी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1923 में, उन्हें दिल्ली में हुए कांग्रेस के एक विशेष सत्र के लिए अध्यक्ष चुना गया।

1930 में गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण, मौलाना आज़ाद को फिर से नमक कानून का उल्लंघन करने के लिए गिरफ्तार किया गया। उन्होंने मेरठ जेल में दो और आधा साल तक बिताए। 1940 में, वह रामगढ़ अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1946 तक उसी पद पर रहे।

भारत की आजादी के बाद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भारत के संविधान सभा के निर्माण में अपनी भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ा। उनका योगदान इस महत्वपूर्ण संघर्ष में न केवल एक प्रमुख राजनीतिक दल के उम्मीदवार के रूप में था, बल्कि वे एक महान शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी उभरे।

भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय, मौलाना आज़ाद ने अपने प्रबल नेतृत्व के तहत मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा का कार्य संभाला। उन्होंने बंगाल, बिहार, पंजाब और असम में जाकर वहां रहने वालों के लिए रिफ्यूजी कैंप बनवाए और उन्हें खाना और सुरक्षा प्रदान की। इस समय का यह योगदान उनकी सामाजिक दृष्टि और सेवा भावना को प्रकट करता है।

जवाहर लाल नेहरु की सरकार में, मौलाना आज़ाद को पहले कैबिनेट मंत्रिमंडल में 1947 से 1958 तक शिक्षा मंत्री के रूप में चुना गया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपनी नैतिक और विद्वता से भरी सेवाएं दीं। मंत्री बनते ही, उन्होंने शिक्षा को सभी वर्गों के लिए अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया, वयस्क निरक्षरता, माध्यमिक शिक्षा, और गरीबों और महिलाओं की शिक्षा पर विशेष बल दिया। उनका उदार मनोभाव और विद्या के प्रति आदर ने उन्हें एक उत्कृष्ट शिक्षा मंत्री के रूप में मान्यता दिलाई।

मौलाना आज़ाद का योगदान हमारे देश के शिक्षा तंत्र को सुधारने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसने समृद्धि और समाज में सामरिक समांतरता की दिशा में कई कदम बढ़ाए। उनकी सोच और कदम हमें आदर्शों की दिशा में प्रेरित करते हैं, और उनके सेवानिवृत्ति भारतीय समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं।

मौलाना अबुल कलाम आजाद का शिक्षा में योगदान

• मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भारतीय समाज को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनका उद्देश्य था समाज में शिक्षा को मुक्त और अनिवार्य बनाना।

• मौलाना आजाद ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाने का प्रयास किया। उन्होंने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के अवसरों को बढ़ाने के लिए भी काम किया।

• आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे और उन्होंने तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित करते हुए तकनीकी संस्थानों की स्थापना और विकास में भी अपना योगदान दिया।

• मौलाना आजाद ने भारत को समृद्ध और शिक्षित देश बनाने के लिए अपने वक्तव्य और दृष्टिकोण में तकनीकी शिक्षा को आवश्यक बताते हुए, उचित सम्मान दिया।

• कई इतिहासकारों के मानने के अनुसार, आजाद ने सांस्कृतिक शिक्षा पर भी ध्यान दिया, जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देना था।

• मौलाना अबुल कलाम आजाद ने विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में भारतीय संस्कृति और विरासत के अध्ययन को बढ़ावा दिया। उन्होंने वर्ष 1947 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना की, जो कि एक स्वायत्त संस्था है और भारत में उच्च शिक्षा के विकास और समन्वय के लिए मुख्य भूमिका निभाती है।

• वर्ष 1948 में, आजाद ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की स्थापना की, जो कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थानों में से एक हैं।

• वर्ष 1949 में, आजाद ने साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में साहित्य, कला, और संगीत के विकास के लिए मुख्य भूमिका निभाना था।

मौलाना आजाद उपलब्धियां

• मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन पर हर साल 11 नवंबर को भारत में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है

• सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE) ने उनके जन्मदिन पर साल 2015 में ‘नेशनल एजुकेशन डे’ मनाने का फैसला किया था

• मौलाना आजाद 35 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सबसे नौजवान अध्यक्ष बने

• भारत की आजादी के बाद मौलाना अबुल कलाम भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(UGC)और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान'(IIT) की स्थापना की

मौलाना आजाद मृत्यु (Maulana Azad Death)

22 फ़रवरी 1958 को स्ट्रोक के चलते, मौलाना आजाद जी की अचानक दिल्ली में मृत्यु हो गई.

मौलाना अबुल कलाम आजाद के अनमोल विचार

• दिल से दी गयी शिक्षा समाज में क्रांति ला सकती है।

• बहुत सारे लोग पेड़ लगाते हैं लेकिन उनमें से कुछ को ही उनका फल मिलता है।

• हमें एक पल के लिए भी यह नहीं भूलना चाहिए कि हर व्यक्ति को यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि उसे बुनियादी शिक्षा मिले, क्योकि इसके बिना वह पूर्ण रूप से एक नागरिक के अधिकारो का निर्वहन नहीं कर पाता हैं।

• गुलामी बहुत बुरी होती है भले ही इसका नाम कितना भी ख़ूबसूरत क्यों न हो।

• एक बच्चे को उसकी शिक्षा के प्रारंभिक चरण में, मातृभाषा के माध्यम से होनी चाहिए। सरकार को इसे अपनी नीति के रूप में स्वीकार कर लिया जाना चाहिए।

• राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम सफल नहीं होगा, अगर यह समाज की आधी आबादी की शिक्षा और उन्नति पर पूरा ध्यान न दे – जो कि महिलाएँ हैं।

• हमें जीवन में कभी हताश नहीं होना चाहिए, निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

• सभी धर्म समान है, हमे सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।

FAQs



मौलाना आजाद का असली नाम क्या था?

आज़ाद का पूरा नाम था- अबुल कलाम मोहिउद्दीन अहमद

मौलाना आजाद को भारत रत्न कब दिया गया?

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत वर्ष 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन हैं?

मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद भारत की स्वतंत्रता के बाद, वह भारत सरकार में पहले शिक्षा मंत्री बने।

मौलाना आजाद का भारत आगमन कब हुआ?

भारत में 1857 की असफ़ल क्रांति के बाद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का परिवार मक्का चला गया था. उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन साल 1898 में परिवार सहित भारत लौट आए और कलकत्ता में बस गए!


आजाद हिंदुस्तान के पहले वजीर तालीम कौन थे?

आजादी के बाद वजीर-ए-तालीम मौलाना अबुल कमाल आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री बने।