हमने अब तक आपके साथ कई आईएएस अधिकारियों के संघर्ष और उनकी सफलता की कहानियां साझा की हैं। आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाने जा रहे हैं, जिनकी कहानी सुनने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। अंसार की कहानी सुनने के बाद आपको लगेगा कि क्या यह सच है या किसी फिल्म की कहानी है।
यहां गरीबी, भूख, और हर प्रकार की कमी है, लेकिन इसके साथ ही हर हालात में पढ़ाई करने की इच्छा, आईएएस अधिकारी बनने की इच्छा और अंत में सफलता उसी साहस का परिणाम होती है जो जिन मुसीबतों को वह हरा देता है। कठिनाईयों के बावजूद खुद को संभालता है, और टूटने नहीं देता।
शेख अंसार का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अंसार के पिता, अहमद शेख, ऑटो रिक्शा चालक थे और घर में उनकी पत्नी के साथ चार बच्चे थे। पिता की आय से घर का खर्च नहीं चलता था, इसलिए उनकी मां, अज़ामत शेख, खेतों में मजदूरी करती थीं। वे जो कुछ भी कमाती थीं, वह अंसार की पढ़ाई में लगाती थीं। जब अंसार चौथी कक्षा में थे, तब उनके पिता को किसी ने सलाह दी कि उन्हें काम पर लगा दें, ताकि घर में थोड़ी आर्थिक सहायता हो सके।
अंसार के पिता ने यह सलाह मान ली और उन्होंने स्कूल जाकर अंसार की पढ़ाई बंद करने की बात कही। लेकिन अंसार के अध्यापक पुरुषोत्तम पडुलकर ने उन्हें समझाया कि अंसार की पढ़ाई में बहुत प्रगति है और उन्हें पढ़ने देना चाहिए। अंसार ने एक साक्षात्कार में बताया कि अगर पुरुषोत्तम सर नहीं होते, तो शायद वे भी आज ऑटो चला रहे होते।
कंप्यूटर की क्लास और नौकरी
यह कहानी कक्षा दसवीं की छुट्टियों की है, जब अंसार ने कंप्यूटर की जानकारी प्राप्त करने का निर्णय लिया। उस समय, वे जिस कंप्यूटर क्लास में प्रवेश करना चाहते थे, उसकी फीस लगभग 2800 रुपये थी। अंसार ने अपनी फीस जमा करने के लिए अपने आस-पास के एक होटल में वेटर के रूप में काम करना आरंभ कर दिया, जहां उन्हें मासिक 3000 रुपये की सैलरी मिलती थी।
इस नौकरी में, उन्हें सुबह 8 से रात 11 तक काम करना पड़ता था, और बीच में उन्हें दो घंटे का ब्रेक मिलता था। अंसार इस ब्रेक के दौरान खाना खाते और कंप्यूटर क्लास में जाते। इस होटल में, अंसार ने अपनी क्षमता के अनुसार, पानी के बड़े बर्तन को कुआं से भरने से लेकर, मेज साफ करने, और रात में होटल की सफाई करने तक का काम किया। उन्हें खुशी थी कि वे अपनी फीस अदा कर सकते थे।
रिश्वत देकर राशन लेने पर सोच लिया की अब अधिकारी ही बनना है।
जब अंसार के पिता बीपीएल वर्ग के लिए एक योजना का लाभ उठाने के लिए दफ्तर गए, तो वहां के एक अधिकारी ने उनसे रिश्वत मांगी। अंसार के पिता ने उन्हें रिश्वत दी। इस घटना के बाद अंसार को एहसास हुआ कि भ्रष्टाचार का शिकार हम जैसे गरीब लोग ही होते हैं। उन्हें लगा कि इसे खत्म करने के लिए उन्हें भी अधिकारी बनना चाहिए।
लेकिन उन्हें अधिकारी बनने का मार्ग नहीं पता था, जब तक कि उन्हें दूसरों के माध्यम से इसकी जानकारी नहीं मिली। इसके बाद, जब अंसार के दसवीं कक्षा के एक शिक्षक का चयन एमपीएससी में हुआ, तो उन्हें लगा कि वे भी उनके जैसे अधिकारी बनना चाहते हैं। जब अंसार कॉलेज में पहुंचे, तो उनके एक और शिक्षक ने उन्हें यूपीएससी के बारे में बताया, और तभी से उन्होंने ठान लिया कि वे भी इस परीक्षा को पास करेंगे। खास बात यह है कि अंसार का एमपीएससी परीक्षा में चयन नहीं हुआ।
अंसार का UPSC का सफर
अंसार के लिए यह यात्रा सरल नहीं थी। दसवीं, बारहवीं और कॉलेज के पहले वर्ष तक, उन्होंने हर साल छुट्टियों में काम किया, लेकिन अंतिम दो वर्ष उन्होंने पूरी तरह से पढ़ाई पर केंद्रित किए। जब भी उन्हें पैसों की आवश्यकता हुई, उनके छोटे भाई अनीस शेख, जिन्होंने अपनी पढ़ाई पांचवीं कक्षा में ही छोड़ दी थी, ने उन्हें पैसे भेजे। अंसार अपने माता-पिता और भाई को अपनी इस सफलता का श्रेय देते हैं।
अंसार ने आगे बताया कि उन्हें कभी भी यूपीएससी में असफल होने का डर नहीं था, क्योंकि उन्हें पता था कि अगर यह नहीं होगा, तो कुछ और होगा। उनकी परिस्थितियाँ उन्हें ऐसी स्थिति में ले गई थीं जहां हारने का विकल्प ही नहीं था। अंसार शेख की साहस, परिश्रम और उत्साह की सराहना करनी चाहिए, जिन्होंने 2015 में पहले ही प्रयास में 361वीं रैंक प्राप्त करके वह काम कर दिखाया, जिसे कई उम्मीदवार सभी सुविधाओं के बावजूद भी कई प्रयासों में नहीं कर पाते। अंसार को पश्चिम बंगाल में नियुक्ति मिली।
यदि ऐसे अभावग्रस्त परिवेश से निकलकर एक लड़का इतनी कम उम्र में आईएएस बन सकता है, तो शायद किसी को भी बहानों के पीछे नहीं छिपना चाहिए। सत्य यह है कि यदि हम ठान लें, तो हमें हमारी मंजिल मिल ही जाती है, वरना हम बहाने बनाने में ही जीवन बिता देते हैं।