विवेक वी के गांव कुट्टीकोल के रहने वाले हैं जहां का हाल बहुत खराब था. उन्हें जरूरी चीजें भी नहीं मिलती थीं, तो सुख-सुविधा की बात ही कहां. उनका घर मिट्टी से बना था, जिसे गोबर से लीपा जाता था. छत के बदले नारियल के पत्ते का शेड लगा था. बिजली, पानी, टॉयलेट जैसी चीजें तो दूर की बातें थीं. उनके पिता और चाचा शराब के आदी थे. उनके घर में शराब की वजह से एक मौत भी हुई थी, पर उनके पिता को फर्क नहीं पड़ा. ऐसे में विवेक का बचपन बहुत ही कठिन था।
विवेक की मां अपने परिवार से अलग थी उन्होंने विवेक को पढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई
वे गांव की दूसरी महिलाओं की भांति घर-घर जाकर कपड़े नहीं धोती थी. वे पढ़ाई-लिखाई में योग्य थीं और नजदीक के पोस्ट ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करती थीं. जब उन्होंने देखा कि कुछ भी नहीं बदल रहा है, तो उन्होंने बच्चों के साथ अपने मायके चले गए. वहां भी पैसों का तंगी था पर वातावरण ससुराल से बेहतर था. विवेक ने वहां जाकर एक अच्छे स्कूल में दाखिला लिया.
बस और टैक्सी में ही पढ़ाई किया करते थे
परन्तु उनका स्कूल घर से 25 किलोमीटर दूर था और उन्हें एक तरफ का रास्ता दो बस और एक ट्रेन से काटना पड़ता था. उन्हें हर दिन 50 किलोमीटर का सफर करना पड़ता था. विवेक को घर पहुंचकर भी कुएं का पानी उठाना, घर की सफाई करना, बर्तन धोना जैसे काम करने पड़ते थे ताकि मां को थोड़ी राहत मिले. इसलिए विवेक को पढ़ाई का समय ही नहीं मिलता था. धीरे-धीरे विवेक ने गाड़ी में चलते-चलते लिखने और होमवर्क करने का हुनर सीख लिया. विवेक बस या टैक्सी में आराम से बैठकर पढ़ाई करने लगे।
पढ़ाई में अव्वल थे
विवेक ने पढ़ाई में हमेशा ही उम्दा प्रदर्शन किया और क्लास 12 के बाद एआईईईई का इम्तिहान दिया और एनआईटी त्रिचि में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की. विवेक का प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगता है कि इंजीनियरिंग के साथ-साथ उन्होंने कैट का भी इम्तिहान उत्तीर्ण किया और आईआईएम कलकत्ता से एमबीए का डिग्री हासिल किया.
नौकरी की पर मन नहीं लगा
उन्होंने कुछ समय तक नौकरी भी की पर उनका दिल उसमें नहीं लगता था. वास्तव में उन्हें अपनी पढ़ाई के दौरान सोशियोलॉजी का शौक हुआ और उन्हें यह समझ में आया कि उनके पिता की शराब की आदत का कारण सिर्फ वे नहीं थे बल्कि वहां का समाज भी था.
वे अपने गांव में जाति के आधार पर होने वाले अन्याय को भी देख चुके थे. इन सब बातों ने उन्हें सिविल सेवा की ओर आकर्षित किया. वे अपनी जाति के साथ ही
यूपीएससी की तैयारी और सफलता
ने पहले तो नौकरी करते हुए भी यूपीएससी की तैयारी की पर जल्द ही उन्हें यह समझ में आया कि यह परीक्षा बाकी परीक्षाओं से कहीं अधिक कठिन थी और इसके लिए पूरा समर्पण चाहिए था. इसलिए उन्होंने डेढ़ साल की नौकरी छोड़कर परीक्षा की तैयारी पर ध्यान देना शुरू किया. उनका पहला प्रयास असफल रहा और उसी दौरान उन्हें यह खबर मिली कि उनके पिता का निधन हो गया है.
यह समय विवेक के लिए बहुत ही दुखद था क्योंकि प्री परीक्षा के लिए सिर्फ 15 दिन ही बचे थे. पर विवेक ने अपने आप को संभाला और इसी हालत में भी परीक्षा दी. विवेक को अपनी मेहनत और जुनून का फल मिला और उन्हें चयन मिल गया. उन्होंने तीनों परीक्षाओं को पास कर दिया. विवेक की 667वीं रैंक आई.
सफलता का श्रेय मां बाप को देते हैं
आखिर में उनके सालों के संघर्ष का अंजाम हुआ. विवेक अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने मां-बाप को देते हैं. वे कहते हैं कि उनके पिता और मां के हालात और परिस्थितियों ने ही उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का हौसला दिया. उनकी मां ने उन्हें बचपन से ही यह सिखाया था कि केवल शिक्षा ही उनकी जिंदगी को सुधार सकती है. विवेक ने भी इस बात को दिल से माना और प्राइमरी से लेकर हायर स्टडीज़ तक बेहद मेहनत करके पढ़ाई की.
विवेक यह भी मानते हैं कि अगर किसी बच्चे का बुनियाद मजबूत हो तो उसे भविष्य में आसानी मिलती है.विवेक का सफर हमें यह बताता है कि हम कहां जन्में हैं, किन हालातों में जन्में हैं, यह हमारे हाथ में नहीं है पर उन हालातों को बदलना जरूर हमारे हाथ में है. इसलिए अपने वर्तमान को अपने भविष्य का आधार न बनाएं और जमकर मेहनत करें. ईमानदार प्रयास और खुद पर विश्वास के साथ कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है
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