राजा के घमंड पर छोटी कहानी | Ghamand Par Kahani Hindi
एक राज्य के राजा ने अपनी बढ़ती उम्र को देखकर यह फैसला किया कि वह राज-पाठ से संन्यास ले लेगा। परन्तु उसका कोई पुत्र नहीं था जिसे वह राज्य सौंप कर जिम्मेदारी से मुक्त होता। राजा की एक पुत्री थी, जिसकी विवाह की योजना भी राजा को बनानी थी। इसलिए उसने मंत्रियों को बुलवाया और कहा कि कल प्रातः जो भी व्यक्ति सबसे पहले इस नगर में प्रवेश करेगा, उसे यहां का राजा नियुक्त किया जाएगा, और मेरी पुत्री का विवाह भी उसी के साथ कर दिया जाएगा।
अगले दिन राज्य के सैनिक फटेहाल कपड़े पहने एक युवक को ले आए और उसका राज्याभिषेक किया गया राजा अपनी पुत्री का विवाह युवक के साथ करके जिम्मेदारियों को सौंप कर स्वयं वन प्रस्थान कर गए।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और उस युवक ने राज्य की बागडोर संभाल ली और एक अच्छे राजा की तरह राज्य की सेवा में लग गया। उस महल में एक छोटी सी कोठरी थी, जिसकी चाबी राजा हमेशा अपने कमर में लटकाए रहता था।
सप्ताह में एक बार वह उस कोठरी में जाता, आधा-एक घंटा अंदर रहता और बाहर निकल कर बड़ा सा ताला उस कोठरी में लगा देता था, और अपने अन्य कार्यों में लग जाता। इस तरह राजा के बार-बार उस कमरे में जाने से सेनापति को अचंभा होता कि राज्य का सारा खजाना, सारे रत्न, मणि, हीरे, जवाहरात तो खजांची के पास हैं। सेना के शस्त्रागार की चाबी मेरे पास है और अन्य बहुमूल्य कागजातों की चाबी मंत्री के पास है. फिर इस छोटी सी कोठरी में ऐसा क्या है, जो राजा यहां हर सप्ताह अंदर जाता है और थोड़ी देर बाद बाहर निकल आता है?
सेनापति से रहा नहीं गया उसने हिम्मत करके राजा से पूछा की राजन, यदि आप क्षमा करें तो यह बताइये कि उस कमरे में एसी कौन सी वस्तु है, जिसकी सुरक्षा की आपको इतनी फिक्र है।
राजा गुस्से से बोले- ‘सेनापति, यह तुम्हारे पूछने का विषय नहीं है, यह प्रश्न दोबारा कभी मत करना।’ अब तो सेनापति का शक और भी बढ़ गया। धीरे-धीरे मंत्री और सभासदों ने भी राजा से पूछने का प्रयास किया परन्तु राजा ने किसी को भी उस कमरे का रहस्य नहीं बताया। बात महारानी तक पहुंच गई और स्त्री हठ के आगे किसी की भी नहीं चलती। रानी ने खाना-पीना त्याग दिया और उस कोठरी की सच्चाई जानने की जिद करने लगी।
आखिरकार विवश होकर राजा सेनापति व अन्य सभासदों को लेकर कोठरी के पास गया और दरवाजा खोला, जब कमरे का दरवाजा खुला तो अंदर कुछ नहीं था, सिवाय एक फटे हुए कपड़े के, जो दीवार की खूंटी पर लटका था।
मंत्री ने पूछा कि महाराज, यहां तो कुछ भी नहीं है। राजा ने उस फटे कपड़े को अपने हाथ में लेते हुए उदास स्वर में कहा कि यही तो है मेरा सबकुछ, जब भी मुझे थोड़ा सा भी अहंकार आता है, तो मैं यहां आकर इन कपड़ों को देख लिया करता हूं। मुझे याद आ जाता है कि जब मैं इस राज्य में आया था तो इस फटे कपड़े के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं था। तब मेरा मन शांत हो जाता है और मेरा घमंड समाप्त हो जाता है, तब मैं वापस बाहर आ जाता हूं।
सीख – हमें अपना अच्छा वक्त आने पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए।