हमारे समाज में ऐसे अनेक व्यक्ति मौजूद हैं जो जीवन की कठिनाइयों के सामने अपने सपनों को त्याग देते हैं और उनका पूरा जीवन पछतावे में बीता देते हैं। फिर भी, हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो अपनी कठिनाइयों को अपने संघर्ष और दृढ़ निश्चय के बल पर पार करते हैं और अपनी सफलता की कहानी लिखते हैं।
ऐसे ही एक उदाहरण है आईएएस एम. शिवागुरू प्रभाकरन , शिवागुरू को अपने जीवन की यात्रा में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी अदम्य इच्छाशक्ति ने सभी कठिनाइयों को परास्त कर दिया। चलिए, इस लेख के द्वारा हम उनकी यूपीएससी की यात्रा को समझने का प्रयास करते हैं।
आर्थिक संकट के चलते इंजीनियरिंग की उम्मीद को त्यागना पड़ा।
शिवागुरू प्रभाकरन की upsc की कहानी 2004 से शुरू होती है, जब घर की आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें अपने सपनों को त्यागना पड़ा। उनका लक्ष्य इंजीनियरिंग में उच्च शिक्षा प्राप्त करना था, लेकिन उनके परिवार के लिए इतनी महंगी पढ़ाई की लागत उठाना संभव नहीं था। इंजीनियरिंग की उम्मीद को उन्होंने नहीं तोड़ा, बल्कि कुछ समय के लिए उसे स्थगित कर दिया। जब वे आर्थिक कठिनाइयों के कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके, तो उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक सहायता करने का निर्णय लिया।
पढ़ाई को छोड़कर परिवार की देखभाल की
शिवागुरू प्रभाकरन के पिता को शराब पीने की आदत थी। उनकी मां और बहन की नारियल बेचने से उत्पन्न होने वाली आय के बावजूद, उन्होंने अपने परिवार की सहायता के लिए मिल में ऑपरेटर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। शिवागुरू ने लगभग दो वर्षों तक ऑपरेटर के रूप में काम किया और साथ ही खेती में भी अपना योगदान दिया।
मां और बहन की मेहनत को देखकर, उन्होंने ठान लिया कि वे अपने भाई की शिक्षा के लिए कठिनाईयों का सामना करेंगे। उन्होंने जो कमाई की थी, वह घर में दी और अपनी शिक्षा के लिए धन इकट्ठा किया, क्योंकि उन्होंने अपने सपनों को किसी भी स्थिति में मरने नहीं दिया था।
घर की कमी के चलते प्लेटफॉर्म पर सोया करते थे
शिवागुरू प्रभाकरन ने अपने भाई की इंजीनियरिंग की पढ़ाई और बहन की शादी के बाद, 2008 में अपनी पढ़ाई को पूरा करने की योजना बनाई। उन्होंने वेल्लोर के थानथाई पेरियार सरकारी प्रौद्योगिकी संस्थान में सिविल इंजीनियरिंग में प्रवेश प्राप्त किया। साथ ही, शिवागुरू ने चेन्नई में आकर आईआईटी मद्रास प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने का संकल्प लिया।
हालांकि, अपने सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने एक बड़ी राशि खर्च की। जब वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, तब उनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें प्लेटफॉर्म पर सोना पड़ता था। वे सप्ताह के अंत में प्लेटफॉर्म पर सोते और सप्ताह के दिनों में कॉलेज की फीस जमा करने के लिए अंशकालिक रूप से काम करते थे।
पहले तीन प्रयास असफल रहे और चौथी कोशिश में IAS बने
प्रभाकरन की कठिनाईयों से लड़ने की दृढ़ता और उनका अदम्य संकल्प उन्हें सफलता दिलाता है। 2014 में, प्रभाकरन ने एमटेक में उच्चतम स्थान प्राप्त करके परीक्षा पास की। इसके बाद, उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में भाग लेने का संकल्प लिया। उन्होंने परीक्षा की तैयारी में अपनी जान लगा दी, लेकिन उनके पहले तीन प्रयास असफल रहे। प्रभाकरन ने हार नहीं मानी और 2018 की यूपीएससी परीक्षा में 101वें स्थान पर रहकर आईएएस अधिकारी बन गए। प्रभाकरन की जीवन यात्रा उन सभी के लिए प्रेरणास्पद है जो हालातों से हार मान लेते हैं और अपने सपनों की कुर्बानी दे देते हैं।