अहंकार पर हिंदी कहानी – Hindi moral story on ego
उसका एक बेटा भी था उसने सोचा अपनी पेंटिंग का यह हुनर वह अपने बेटे को सिखा दे फिर उसने पेंटिंग अपने बेटे को सिखाना शुरू किया क्योंकि उस व्यक्ति ने भी पेंटिंग करना अपने पिता से ही सीखा था तो उसने अपने बेटे से कहा बेटा अब मेरी उम्र हो गई है और अब से पेंटिंग तू करेगा और अब मैं सिखाऊंगा तुझे की पेंटिंग कैसे करते हैं फिर वह अपने बेटे को पेंटिंग करना सिखाता है कि कैसे कलर करते हैं, पेंटिंग को सुंदर कैसे बनाते हैं, पेंटिंग को बेचते कैसे हैं धीरे-धीरे उसका बेटा काफी हद तक सीख चुका था वह पेंटिंग बनाना सीख चुका था तो उसने एक अच्छी सी पेंटिंग बनाई और उसे बाजार में बेचने चला गया और वह उस पेंटिंग को ₹100 में बेच कर घर आया।
घर आकर उसने पिताजी को बताया तो पिताजी बहुत खुश हुए कि तूने अपनी पहली पेंटिंग बेच दी लेकिन वह खुश नहीं था उसने पिता जी से कहा कि पिता जी आप तो अपनी पेंटिंग ₹500 में बेचते थे लेकिन मेरी पेंटिंग केवल ₹100 में बिकी पिताजी मुझे थोड़ा और सिखाओ, तब उसके पिताजी ने उसे और सिखाना शुरू किया और अब वह पहले से ज्यादा अच्छी तरीके से सीख चुका था, फिर से उसने एक और पेंटिंग बनाई सुबह उसे बेचने गया और घर आ गया और इस बार पेंटिंग ₹200 में बेची लेकिन फिर भी वह खुश नहीं था और उसने पिताजी से फिर वही कहा कि पिताजी मैं खुश नहीं हूं मेरी पेंटिंग सिर्फ ₹200 में ही बिकी लेकिन आप पेंटिंग ₹500 में बेच कर आते थे आपको अभी भी कुछ ऐसा पता है जो मुझे नहीं पता है।
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इस बार और अच्छे से पिताजी ने उसे सिखाया कि कैसे कलर करते हैं किस तरह से पेंटिंग को और अच्छा बनाया जाता है उसे और भी ज्यादा सिखाया गया उसने अच्छे से सीख कर फिर एक और पेंटिंग बनाई और फिर वही मार्केट में गया और अपनी पेंटिंग बेच कर घर आया और इस बार उसकी पेंटिंग ₹300 में बिकी और उसने फिर यही बात पिताजी को बताई तो पिताजी बहुत खुश हुए कि बेटा तुम तरक्की करते जा रहे हो लेकिन बेटा अब भी मायूस था और उसने अपने पिताजी से बोला कि पिताजी मेरी पेंटिंग अभी भी ₹500 में क्यों नहीं बिक रही है ऐसा अभी भी आपको क्या पता है जो मुझे नहीं पता तो पिताजी ने कहा कि बेटा तु मायूस मत हो मैं हमेशा तुझे सिखाता रहूंगा कि इससे महंगी पेंटिंग कैसे बेचते हैं तो पिताजी ने उसे और सिखाया फिर उसने और बेहतर पेंटिंग बनाई और फिर अगले दिन वह बाजार में उस पेंटिंग को बेचने गया और फिर पेंटिंग बेचकर जब वह घर आया तब पहली बार वह बहुत ज्यादा खुश था तो पिताजी ने पूछा तुम आज इतने खुश कैसे लग रहे हो?
तो बेटा बोला पिताजी मैंने अपनी पेंटिंग को इस बार ₹700 में बेची है तो पिताजी बहुत खुश हुए तो पिताजी बोले बेटा मुझे बहुत खुश हुई कि तेरी यह पेंटिंग ₹700 में बिकी फिर पिताजी कहते हैं कि बेटा अब मैं तुझे बताऊंगा की पेंटिंग को ₹1000 में कैसे बेचते हैं फिर बेटा बोला पिताजी बस करो मैं आज अपनी पेंटिंग ₹700 में बेच कर आया हूं आपने अपनी पूरी जिंदगी में ₹500 रुपये से ज्यादा की पेंटिंग नहीं बेची है और आप मुझे सिखाओगे की हजार रुपये में कैसे बेचते हैं।
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तो पिताजी ने कहा कि बेटा तेरी पेंटिंग अब ₹700 से ज्यादा मैं नहीं बिक पाएगी क्योंकि अब तेरा सीखना बंद हो चुका है क्योंकि जब मैं अपने पिता से सीख रहा था मतलब तेरे दादा से जब मैं सीख रहा था जो कि अपनी पेंटिंग को ₹300 में ही बेच दिया करते थे तो मैंने भी किसी दिन अपनी पेंटिंग को ₹500 में बेच दी थी तब मैंने भी अपने पिताजी से यही कहा था कि पिताजी बस करो आपने अपनी जिंदगी में ₹300 से ज्यादा की पेंटिंग बेची ही नहीं और मैंने अपनी जिंदगी में ₹500 की पेंटिंग बेच दी तो आपसे मैं और क्या सीखूं?और बेटा उस दिन के बाद से मैंने सीखना बंद कर दिया और आज तक में भी ₹500 से ज्यादा की पेंटिंग नहीं बेच पाया क्योंकि मेरे अंदर एक अहंकार आ गया था यह अहंकार ज्ञान का बहुत बड़ा दुश्मन है और किसी ज्ञानी के लिए यह अहंकार किसी जड़ से कम नहीं है जो धीरे-धीरे उसे खत्म कर देता है उसे रोक देता है जब हम यह मानने लग जाते हैं कि मैं इससे कैसे सीख सकता हूँ जबकि मैं तो इससे और अच्छा कर रहा हूं तब हम सीखना बंद कर देते हैं और जिसका सीखना बंद हुआ उसकी तरक्की बंद हो गई आगे बढ़ने का रास्ता बंद हो गया।
हर इंसान को सब कुछ तो नहीं पता होता लेकिन लेकिन सभी को कुछ ना कुछ तो जरूर पता होता है और हम हर इंसान से थोड़ा-थोड़ा करके इसी तरह बहुत कुछ सीख सकते हैं।
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