स्वामी विवेकानंद के शिकागो सम्मेलन का भाषण – Swami vivekananda chicago speech in hindi
जब स्वामी विवेकानंद विश्व प्रसिद्ध शिकागो सम्मेलन में अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले थे उससे पहले उन्होंने मां शारदा से अनुमति मांगी की है क्या मैं अब पूरी दुनिया में जाकर अपनी संस्कृति का प्रचार कर सकता हूं? क्या मैं लोगों को कुछ बातें बता सकता हूं? तब मां शारदा ने बोला कि नरेंद्र (स्वामी विवेकानंद बनने से पहले उनका नाम नरेंद्र ही था) यहां पास में ही जो चाकू रखा हुआ है कृपया करके तुम मुझे वह उठाकर दे दोगे,तो नरेंद्र ने वह चाकू उठाया और वह चाकू उठाकर मां शारदा को दे दिया और जैसे ही उन्होंने मां शारदा को चाकू उठाकर पकड़ाया तो मां शारदा ने कहा कि अब तुम पूरी दुनिया में अपनी संस्कृति का प्रचार करने के लिए स्वतंत्र हो अब तुम जा सकते हो और पूरी दुनिया को यह पाठ पढ़ा सकते हो। तब स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि आपने तो मुझसे कोई परीक्षा ली ही नहीं? आपने तो मुझसे कोई सवाल पूछा ही नहीं? और आपने मुझे पूरी दुनिया में जाने की अनुमति दे दी कैसे?
तब मां शारदा ने कहा कि जब मैंने तुमसे चाकू मांगा तब कोई भी साधारण सा इंसान होता तो वह मुझे चाकू की धार वाला हिस्सा पकड़ाता, लेकिन जब मैंने तुमसे चाकू मांगा तो तुमने मुझे चाकू की लकड़ी वाला हिस्सा पकड़ाया और जबकि धार वाला हिस्सा तुमने खुद ने ही पकड़ा हुआ था जिससे कि तुम्हें चोट भी लग सकती थी तुम्हारा हाथ भी कर सकता था लेकिन फिर भी तुमने धार वाला हिस्सा पकड़ा और लकड़ी वाला मुझे पकड़ाया!
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यहां पर स्वामी विवेकानंद से सीखने वाली बात यह है किसी छोटे से कार्य को करते हुए भी दूसरों का हित देखें जैसे वह मां शारदा का हित देख रहे थे, इस प्रकृति का जो सबसे बड़ा नियम है क्या आप जानते हैं वह है “बांटना ” जैसे हमे सूर्य बिना किसी इच्छा के हमको यह रोशनी बांट रहा है, जैसे यह पर्यावरण बिना किसी इच्छा के हमें ऑक्सीजन दे रही है, यह प्रकृति बांटने ही तो काम कर रही है वैसे ही अगर इंसान के अंदर बांटने की भावना होना चाहिए।
हर एक इंसान के अंदर भी बांटने की भावना होना चाहिए यह मत देखो कितना पैसा मिलेगा यह मत देखो कि बदले में मिलेगा क्या बस यह देखो कि आप बांट क्या सकते हो आप कोई भी सर्विस कोई भी प्रोडक्ट या कोई भी कुछ भी बिज़नेस करना चाहते हो तो सबसे पहले यह देखो क्या यह दूसरों की जिंदगी में क्या फायदा पहुंचा सकता है या किसी दूसरों की मदद कर सकता है और फिर देखना आप आगे आगे चलेंगे और कामयाबी आपके पीछे खुद आएगी क्योंकि आगे हमेशा वही इंसान चलता है जो बांटना जानता हो मांगने वाला तो हमेशा लाइन में खड़ा रहता है तो सबसे जरूरी चीज यही है कि आप बांटने को अपनी जिंदगी में उतारे।
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जब स्वामी विवेकानंद शिकागो के उस बहुत बड़े सम्मेलन में पहुंचे तब कुछ लोग स्वामी विवेकानंद को देखकर उनके पास आए तो वह उनके पास आकर उनसे पूछते हैं “हेलो हाउ आर यू” तो स्वामी विवेकानंद अपने दोनों हाथों को जोड़कर उनसे कहते हैं “नमस्कार” तो उन लोगों को लगता है कि शायद यह साधु जैसे दिखने वाले इंसान को अंग्रेजी नहीं आती होगी तो उनमें से एक इंसान को टूटी-फूटी हिंदी आती थी तो वह स्वामी जी से पूछते हैं कि “कैसे हैं आप” तो स्वामी विवेकानंद फिर दोनों हाथ जोड़कर बोलते हैं “आई एम फाइन” फिर वह लोग हैरान हो जाते हैं यह क्या, इस इंसान को तो अंग्रेजी आती है फिर वह दोनों आपस में बात करके स्वामी विवेकानंद से पूछते हैं कि जब हम आपसे अंग्रेजी में बात कर रहे थे तब आपने हिंदी में जवाब दिया लेकिन जैसे ही हमने हिंदी में बात की तब आपने अंग्रेजी में जवाब दिया यह हमें समझ में नहीं आया?
तब स्वामी विवेकानंद ने कहा कि जब आप अपनी मां का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी मां का सम्मान कर रहा था, लेकिन जैसे ही आपने मेरी मां का सम्मान किया तब मैंने भी आपकी मां का सम्मान किया।
इसी तरह हमें भी अपनी संस्कृति अपने देश की भाषा से जो इंसान जुड़ा रहता है अपनी संस्कृति का सम्मान करता है वह उतना ही सम्मान दूसरे के कल्चर को दूसरे की संस्कृति को दूसरे की भाषा को देता है वह इंसान जिंदगी में बहुत तरक्की करता है अंग्रेजी इसलिए मत सीखो कि आप किसी दूसरे को प्रभावित करो क्योंकि आपका प्रभाव आपके व्यक्तित्व में हैं आप इंग्लिश अंग्रेजी बोल कर किसी को प्रभावित नहीं कर सकते आपको अंग्रेजी सिर्फ इसलिए सीखना है कि आप को भाषा का एक बैरियर तोड़ना है अंग्रेजी बस इसलिए सीखो कि वह वर्तमान में उपयोगी है! आपका व्यक्तित्व संस्कृति से ही बनता है ना की किसी दूसरे की सीखी हुई भाषा से और जो इंसान अपनी संस्कृति के साथ जुड़ा रहता है और उसी के साथ दूसरे की संस्कृति का भी मान और सम्मान करता है वह अपनी कामयाबी की तरफ जल्दी बढ़ता है।
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शिकागो सम्मेलन से कुछ वक्त पहले स्वामी विवेकानंद बाहर खड़े हुए थे तो एक कपल उनको देखकर उनके पास आते हैं क्योंकि वह थोड़े अलग दिख रहे थे क्योंकि उन्होंने सिर पर पगड़ी पहनी थी और भगवा वस्त्र पहने हुए थे और चादर की तरह लपेट रखा था तो उन कपल को वहां थोड़े अलग से लगे तो वह महिला उनके पास आती है और उनको देखकर बोलती है “डोंट यू वियर कोट पेंट टू लुक जेंटलमैन” तब स्वामी विवेकानंद ने जवाब दिया – योर कल्चर योर ड्रेस मैक्स आ मेन जेंटलमैन बट अवर करेक्टर्स अवर कल्चर मैक्स आ मेन जेंटलमैन (आपकी संस्कृति में कपड़े टेलर एक इंसान को जेंटलमैन बनाता है जबकि हमारी संस्कृति में इंसान का चरित्र उसका व्यक्तित्व उसको महान बनाता है जेंटलमैन बनाता है)
जो भी व्यक्ति अपने कपड़ों से अपने वस्त्र से दूसरों को प्रभावित करना चाहता हो वह कभी भी किसी को प्रभावित नहीं कर सकता व्यक्ति प्रभावित किसी को करता है तो वह अपने चरित्र अपने व्यक्तित्व से करता है।
हां यह जरूरी हो सकता है कि आज आप वर्तमान समय में मॉडर्न जिंदगी में जी रहे हैं तो यहां पर आपका पहनावा आप का फर्स्ट इंप्रेशन जरूर क्रिएट करती है लेकिन लंबे समय तक यहां प्रभावित नहीं करती, लंबे समय तक प्रभावित आपका चरित्र आपका व्यक्तित्व ही करता है।
फिर एक लेडी स्वामी विवेकानंद के पास आती है क्योंकि वह उनसे बहुत प्रभावित थी क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने शिकागो सम्मेलन में जो स्पीच दी थी वह सभी को बहुत पसंद आई थी उसे आज तक कोई भुला नहीं सका है कहते हैं जब हिंदुस्तान से अमेरिका तक हिंदुस्तान के किसी इंसान को कोई ज्यादा सुनना तक पसंद नहीं करता था वहां स्वामी विवेकानंद की सिर्फ एक लाइन कि “माय ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका” बोलने पर ही 2 मिनट तक तालियां बजती थी, तो स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर एक लेडी जो उनके पास आकर बोलती है कि मैं आपसे शादी करना चाहती हूं तो स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि मुझे क्षमा कीजिए आप देख सकते हैं कि मैं एक ब्रह्मचारी हूं में एक स्वामी हूंं एक साधु के वेश में हूं और मैंने गृहस्थ जीवन को आजीवन के लिए त्याग दिया है तो इसलिए मैं आपसे शादी नहीं कर सकता लेकिन वह लेडी फिर बोलती है कि मुझे तो आपके जैसा ही एक पुत्र चाहिए और मुझे तो आपसे शादी करनी है तो स्वामी विवेकानंद जी धैर्य से उनकी बात सुनकर जवाब देते हैं,
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स्वामी विवेकानंद कहते हैं आपको मेरे जैसा पुत्र चाहिए तो आज से मैं ही आपका पुत्र हूं और आप मेरी मां है आप मुझे पुत्र के रूप में स्वीकार कीजिए और मैं आपको मां के रूप में स्वीकार करता हूं आपको मेरे जैसा नहीं मैं ही पुत्र रूप में उपलब्ध हो जाता हूं।
हर इंसान का चरित्र ही उसे बनाता है और बिगड़ता है जिस इंसान के पास अच्छा चरित्र नहीं है कामयाबी और पैसा तो दूर की बात है छोटी-छोटी चीजें भी आपके हाथ से निकलती जाएंगे अगर आप के चरित्र में महानता नहीं है तो। इसीलिए जिस इंसान के पास अच्छा चरित्र है वही अपनी ज़िंदगी मे तरक्की की ओर बढ़ता है।